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शिक्षाप्रद कहानिया व्यक्ति बड़ा ही समझदार, व्यवहारज्ञ और बुद्धिमान था। उसने मन ही मन चरवाहे की समस्या को सुलझाने की युक्ति सोच चरवाहे से कहा'अभी गायें तो तुम्हारे पास ही हैं ना। चरवाहे ने तुरन्त उत्तर दिया हाँ मेरे ही पास हैं। तो तुम एक काम करो तुम उनको अपने पास ही रखो। मालिकों के घर भेजो ही मत। यह कहकर उसने आगे की सारी योजना उसको समझा दी कि आगे कैसे क्या करना है।
सूर्य अस्त होने को हो गया लेकिन अभी तक वेदान्ती जी के घर गायें नहीं पहुँची। वेदान्ती बड़े चिन्तित हो गए और भागे-भागे पहुँचे चरवाहे के घर और पूछा- 'अरे ओ चरवाहे! क्या बात है? आज हमारी गाएं घर क्यों नहीं पहुँची?' यह सुनते ही चरवाहे ने उत्तर दिया- हे दर्शनश्रेष्ठ! कौन-सी गाएं? कैसी गायें? शायद आप वेदान्त दर्शन के उस सूत्र को भूल गए? “सर्वं ब्रह्ममयं जगत्" अर्थात् सारा जगत् ब्रह्ममय है तो फिर भला कौन गायें देने वाला और कौन गाय लेने वाला? अतः आप अब अपने घर जाएँ और चिन्तन करें। क्योंकि दार्शनिक का काम तो वैसे भी चिन्तन करना ही होता है। और हाँ अगर हो सके तो चिन्तन के साथ-साथ मनन भी अवश्य करें और उसके मूल को समझकर थोड़ा बहुत व्यवहारज्ञ बनने का भी प्रयत्न करें। कहा भी जाता है कि'लोकव्यवहारज्ञो हि सर्वज्ञोऽन्यस्तु प्राज्ञोऽप्यवज्ञायक एव।' अर्थात् वास्तव में लोकव्यवहार जानने वाला मनुष्य सर्वज्ञ के समान और लोकव्यवहार शून्य विद्वान् होकर भी लोक द्वारा तिरस्कृत समझा जाता है।
बात वेदान्ती की समझ में आ गई और वह बोला- 'तुम ठीक कहते हो भाई केवल दार्शनिक चिन्तन करने मात्र से कुछ नहीं होता। यथार्थ के साथ-साथ व्यवहार का ज्ञान होना भी आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है। अतः ये लो अपनी मजदूरी।'
कुछ देर बाद बौद्ध दार्शनिक भी पहुँच गया चरवाहे के घर और कहने लगा- 'अरे ओ चरवाहे! क्या बात है? मेरी गायें अभी तक घर क्यों नहीं पहुँची।'