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शिक्षाप्रद कहानिया
95 यह सुनकर वेदान्ती बोला- 'अरे भले आदमी! क्या तुम जरा भी वेदान्त नहीं पढ़े हो क्या? इतना भी नहीं जानते वेदान्त में क्या लिखा है? चलों, नहीं जानते तो मैं ही तुम्हें बता देता हूँ। उसमें लिखा है कि
सर्वं खलु इदं ब्रह्म, नेह नानास्ति किञ्चन।
अब तुम्हीं बताओं भला, जब सारा जगत् ब्रह्ममय है तो हम सब भी ब्रह्ममय हैं और जब हम सब ब्रह्ममय हैं तो कौन किसको मजदूरी देगा? सोचो तुम!
यह सुनकर चरवाहा बेचारा मन ही मन बहुत दुःखी हुआ। वह बेचारा क्या जाने इन दार्शनिक बातों को? और इसी उहापोह की स्थिति में वह पहुँचा दूसरे विद्वान् के पास और बोला- 'हे दर्शन शिरोमणि! मैंने आपकी गायें चराई हैं। महीना पूरा हो गया कृपया मुझे मेरी मजदूरी दे दीजिए?
___यह सुनते ही वह बोला- 'अरे भले मानुष! क्या तुम्हें जरा भी ज्ञान नहीं है कि महात्मा बुद्ध ने क्या कहा है? अच्छा नहीं पता तो मैं ही तुम्हें बता देता हूँ। सुनो! उन्होंने कहा है कि- “सर्वं क्षणिकम्" और इसका अर्थ है कि इस दुनिया में जो कुछ भी है सब क्षणिक है। जो गायें तुमने चराई, वे तो कब की मर चुकी हैं। वे तो पहले क्षण में ही मर गई। अब जो गायें हैं, वे तो उनकी सन्तान हैं। तुम भी मर चुके हो। मैं भी मर चुका हूँ। तुम्हारा भी नया जन्म हुआ है, मेरा भी नया जन्म हुआ है, गायों का भी नया जन्म हुआ है। अब भला तुम ही बताओ जब ना तुम वो हो, ना मैं वो हूँ, ना गायें ही वे हैं? तो मजदूरी किस बात की?
यह सुनकर चरवाहा स्तब्ध हो गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। और इसी मकड़जाल में उलझा हुआ वह अपने घर की ओर जा रहा था। तभी उसे वहाँ रास्ते में एक अपना पुराना कोई परिचित सज्जन मिल गया। चरवाहे के उदास चेहरे को देखकर उसने उससे पूछा- 'क्या बात है, तुम इतने परेशान क्यों हो? इतना सुनते ही चरवाहा फूट पड़ा और उसने सारी रामकहानी उस सज्जन को बतला दी।' वह