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शिक्षाप्रद कहानिया
नानकदेव वैसे ही खड़े रहे। नमाज पढ़ते-पढ़ते काजी सोचने लगा कि आखिर उसने इस घमण्डी व्यक्ति को झुका ही दिया, जबकि सूबेदार का ध्यान घर की ओर लगा हुआ था। कारण यह था कि उस दिन अरब का कोई व्यापारी बढ़िया घोड़े लेकर उसके पास आने वाला था। वह सोच रहा था कि घोड़े बिकवाने के बदले में उससे कैसे अधिक से अधिक कमीशन लिया जाए। इसी उदेड़-बुन में लगा हुआ था सूबेदार।
नमाज खत्म होते ही जैसे ही वे दोनों खड़े हुए, तो उन्होंने नानकदेव को चुपचाप खड़े पाया। सूबेदार आग-बबूला होते हुए बोला'तुम सचमुच ढोंगी हो। खुदा का नाम लेते हो, मगर नमाज नहीं पढ़ते।'
___यह सुनकर नानकदेव बोले- 'नमाज पढ़ता भी तो किसके साथ? क्या आप लोगों के साथ, जिनका स्वयं का ही ध्यान खुदा की ओर नहीं था? अब आप ही बताइए, क्या आपका ध्यान उस समय कमीशन लेने की ओर था कि नहीं? और ये आपके काजी जी तो उस समय मन ही मन इतने खुश हो रहे थे कि जैसे उन्होंने मुझे मस्जिद में लाकर बड़ा तीर मार लिया हैं।'
यह सुनते ही दोनों झेप गए और गुरु नानक के चरणों में झुककर क्षमा माँगने लगे।
४२. जाकी रही भावना जैसी मन्त्रे तीर्थे द्विजे देवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ। यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी॥
अर्थात् मन्त्र में, तीर्थ में, ब्राह्मण में, देवता में, ज्योतिषी में, वैद्य में और गुरु में मतलब सीधा-सच्चा यह है कि जैसी आपकी भावना होगी उसी प्रकार का फल आपको प्राप्त होगा। हमारे यहाँ कहा जाता है कि 'कंकर-कंकर में शंकर हैं।' अर्थात् प्रत्येक कण में भगवान् विद्यमान हैं। अगर आप पत्थर में भी भगवान् की भावना भाते हो तो वह आपके