________________
शिक्षाप्रद कहानिया
91
अब आप ही बताइए क्या फायदा हुआ ऐसी जिद्द और गुस्से का? थोड़ी देर पहले जो घर स्वर्ग की तरह चमक रहा था, बन गया वह नरक।
४१. सच्ची भक्ति
बहुत से लोगों को देखा जाता है कि वे दूसरों को भक्ति का पाठ पढ़ाते रहते हैं, जबकि वे स्वयं न तो भक्ति की ABCD जानते हैं और न ही जानने का प्रयत्न करते हैं।
एक बार गुरु नानकदेव यात्रा करते हुए सुल्तानपुर पहुंचे। वहाँ उनके प्रति लोगों की दृढ़ श्रद्धा को देखकर वहाँ के काजी को उनसे ईष्या हो गई। उसने सूबेदार दौलतखाँ के खूब कान भरे और शिकायत की कि वह कोई ढोंगी है, इसीलिए आज तक कभी मस्जिद में नमाज पढ़ने भी नहीं आया। सूबेदार भी कान का कच्चा था। उसने काजी का यकीन कर तुरन्त सिपाही के हाथ नानकदेव को बुलावा भेजा, किन्तु नानकदेव ने उस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सुबेदार ने पुनः सिपाही को भेजा। अबकी बार नानकदेव सिपाही के साथ आ गए। उन्हें देखते ही सूबेदार डाँटते हुए बोले- 'आपको समझ नहीं आता क्या? पहली बार बुलाने पर क्यों नहीं आए?'
यह सुनकर नानकदेव बोले- मैं खुदा का बन्दा हूँ, तुम्हारा नहीं। 'अच्छा! तो तुम खुदा के बन्दे हो। लेकिन क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि किसी व्यक्ति के मिलने पर पहले उसे सलाम किया जाता है? तुमने सलाम किया मुझे?'
नानकदेव बोले- 'मैं खुदा के अतिरिक्त और किसी को सलाम नहीं करता।' 'तब फिर ओ खुदा के बन्दे! मेरे साथ नमाज पढ़ने चल। सब पता चल जाएगा कि तुम कितनी खुदा की इबादत करते हो।' क्रोधित होकर सूबेदार बोला। और गुरु नानकदेव उसके साथ मस्जिद गए। सूबेदार और काजी तो नीचे बैठकर नमाज पढ़ने लगे, लेकिन गुरु