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शिक्षाप्रद कहानिया
79 हुआ महात्मा जी आप चिल्ला क्यों रहें हैं? सुनकर साधु बोले- अरे!
आप लोग देख नहीं रहे हैं? इस ढूँठ ने मुझे पकड़ लिया है छोड़ ही नहीं रहा है। यह देखकर सब आश्चर्यचकित होते हुए एक-दूसरे को देखने लगे। लेकिन, कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। तभी उन लोगों में से हिम्मत करके एक बुजुर्ग व्यक्ति आगे आया और कहने लगा- हे महात्मा! हम सब लोग तो आपके पास ज्ञान लेने आते हैं और आप खूब देते भी हैं। लेकिन आज आप स्वयं ऐसी अज्ञानता भरी बात क्यों कर रहें हैं? भला, ठूठ ने आपको थोड़ा ही पकड़ रखा है, उलटा आपने ही ठूठ का पकड़ रखा है।
यह सुनते ही साधु ठूठ को छोड़ते हुए मुस्कराने लगे और बोलेयही बात तो मैं तुम सबको तथा विशेषकर इस नवागंतुक दम्पती को समझाना चाहता हूँ कि दु:ख ने तुम्हें नहीं अपितु, तुमने ही दु:ख को पकड़ रखा है। अगर, तुम छोड़ दो तो ये अपने आप छूट जाएंगे।
मित्रों! उक्त समस्या केवल उन चन्द लोगों की या केवल उस दम्पती मात्र की नहीं है। अपितु हम सबकी यही स्थिति है। हम सब साधु की इस बात पर गम्भीरता से चिन्तन-मनन करें तो निष्कर्ष (परिणाम) यही निकलेगा कि हमारे ये तथाकथित अतिथि दु:ख, तकलीफ, टैंशन आदि इसलिए हमें घेरे हुए हैं कि हमने अपनी सोच वैसी विकसित कर रखी है। ऐसा न हुआ तो क्या होगा? वैसा न हुआ तो क्या होगा? ये सब दुःख हमारी अपनी ही नासमझी की उपज हैं और कुछ नहीं। इसके लिए एक सटीक उदाहरण है जिसे मैं यहाँ लिखने का प्रयत्न कर रहा
किसी शहर में एक पति-पत्नी रहते थे। एक दिन दोनों में झगड़ा हो रहा था। पति कह रहा था मैं अपने बेटे को वकील बनाऊँगा। पत्नी कह रही थी मैं अपने बेटे को डॉक्टर बनाऊँगी। बस इसी बात पर दोनों झगड़ रहे थे। उसी समय उनका कोई परिचित वहाँ आ गया। उसने भी इन दोनों का झगड़ा सुना। क्योंकि उसके आने के बाद भी ये शान्त नहीं हुए थे।