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शिक्षाप्रद कहानियां
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लगे और तब वह यह कहे कि जब तक उसे यह मालुम न हो जाए कि एक्सीडेंट किसने किया था। उसका नाम क्या था? उसकी जाति क्या थी? तब तक न तो मैं अस्पताल जाऊँगा और न ही उपचार कराऊँगा। अब तुम्हीं बताओ मलुक्यपुत्र ऐसी स्थिति में उसका क्या होगा?"
वह बोला- अवश्य ही या तो उसकी बीमारी बढ़ जाएगी और हो सकता है उसकी मृत्यु भी हो जाए ।
यह सुनकर महात्मा बुद्ध बोले, 'तुम ठीक कहते हो, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार एक्सीडेंट करने वाले से कहीं अधिक वह स्वयं होगा, क्योंकि उसने व्यर्थ की हठ की। ठीक इसी प्रकार मलुक्यपुत्र! तुम भी व्यर्थ की बातों के लिए अपनी जिज्ञासा क्यों प्रकट करते हो? जो कुछ मैंने प्रकट किया है, उसे ही गहराई से जानने और वैसा आचरण करने का प्रयास करो, इसी में तुम्हारा कल्याण है। जिसे मैंने अब तक प्रकट नहीं किया, उसे अप्रकट ही रहने दो, क्योंकि उसे जानने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। '
मलुक्यपुत्र महात्मा बुद्ध का इशारा समझ गया और अपने काम में लग गया।
२८. तृष्णा का अन्त बुरा
बहुत समय पहले की बात है। उस समय पढ़ने-पढ़ाने का काम ब्राह्मण ही किया करते थे। क्योंकि पहले चार वर्ण थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र । ब्राह्मणों का कार्य था विद्या का अध्ययन-अध्यापन। क्षत्रियों का कार्य होता था देश की रक्षा करना, वैश्यों का व्यापार तथा शद्रों का सेवा कार्य करना ।
एक बार एक राजा ने अपने राजकुमार और राजकुमारी की शिक्षा के लिए एक ब्राह्मण को नियुक्त किया । ब्राह्मण विद्याध्ययन करने-कराने में खूब पारंगत तो था ही साथ में प्रकाण्ड विद्वान् भी था, लेकिन नित्यप्रति राजसी ठाठ-बाठ और वैभव को देखकर उसके मन में