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शिक्षाप्रद कहानियां
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३३. यथार्थ का अवबोध
सुकरात एक महान् पाश्चात्य दार्शनिक थे। वे बड़ी ही उदारता एवं सरल शैली में लोगों को यथार्थ का अवबोध करा देते थे। एक बार उनके पास एक बड़ा जमींदार आया। उसको अपनी धन-दौलत, जमीन-जायदाद आदि पर बड़ा गर्व था। वह सुकरात से कहने लगा'महामना आप कभी मेरे गाँव में आइए मेरे पास अपार सम्पत्ति है, रहने के लिए महलनुमा बहुत बड़ा घर है। मैं वे सब आपको दिखाऊँगा।
सुकरात उसकी सारी बात सुनते जाते और मन्द-मन्द मुस्कराते जाते। जब वह चुप हुआ, तब सुकरात ने अपने शिष्य को कहा कि'जरा विश्व का नक्शा लाओ।' उन्होंने मन ही मन सोच लिया था कि इस व्यक्ति का घमण्ड तोड़ना आवश्यक है, वरना यह बहुत बड़ी भ्रान्ति में जीता रहेगा। जो इसके लिए अत्यन्त घातक सिद्ध होगा। और एक सच्चे दार्शनिक अथवा गुरु का कर्तव्य भी यही होता है कि वह ऐसे हर किसी व्यक्ति को इस प्रकार के अयथार्थ अवबोध से बाहर निकाले।
शिष्य नक्शा ले आया तब नक्शे को दिखाते हुए सुकरात बोलेइस नक्शे को देखकर सर्वप्रथम यह बतलाओ कि इसमें हमारा देश कहाँ पर है।'
जमींदार ने बड़े ध्यान से काफी देर तक देखा और एक छोटे-से बिन्दु की ओर इशारा करते हुए बोला- 'यह है हमारा देश।'
यह देखकर सुकरात बोले- 'इतने बड़े विश्व में इतना छोटा-सा देश! अच्छा अब इसमें यह देखो कि तुम्हारा गाँव कहाँ है?'
जमींदार ने फिर बड़े ध्यान से चश्मा-वश्मा लगाकर काफी देर तक नक्शे को देखा और फिर पहले वाले बिन्दु से भी एक छोटे बिन्दु की ओर इशारा करते हुए बोला- 'ये रहा हमारा गाँव।' इसके बाद सुकरात न नक्शा दिखाते हुए कहा कि- अच्छा अब यह बताओं कि इस नक्शे में अपनी जमीन और महल दिखाओ।