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शिक्षाप्रद कहानियां
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दूसरा बोला- 'अरे! कुछ ज्योतिष - व्योतिष का ज्ञान भी है कि
नहीं?'
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तीसरा बोला- अरे ! कभी जैनदर्शन भी पढ़ा है कि नहीं ? चौथा बोला- अरे ! कभी कुछ पौराणिक कथाएं पढ़ी-सुनी कि नहीं?
पाँचवा बोला- अरे! कुछ भूगोल - खगोल का ज्ञान है कि नहीं तुम्हें?
छठा बोला- अरे ! कुछ साहित्य - वाहित्य भी पढ़ा-सुना कि नहीं?
इस प्रकार वे सभी दार्शनिक महाशय उस खेवइए की खिल्ली उड़ा रहे थे कि अरे! ये क्या जाने इन सब बातों को। हरेक के भाग्य में थोड़ा ही लिखा होता है ये शास्त्रज्ञान । सभी हमारे जैसे थोड़ा ही होते हैं। इसी तरह वे और भी अनाप-शनाप बातें करते हुए अपने घमण्ड को व्यक्त कर रहे थे।
खेवइया सब बातें सुन रहा था और चुपचाप नाव खेता जा रहा था। तभी उनमें से एक दार्शनिक महाशय बोले- 'अरे ओ ! गूँगे क्या तू सचमुच गूँगा ही तो नहीं है कुछ बोलता ही नहीं है। या हमारी बातें सुनकर तेरी बोलती बन्द हो गयी है। '
तब खेवइया मुस्कराते हुए बोला- 'हे मेधावियों! मेरे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी परदादा, दादा, और बाप सब यही काम करते चले आयें हैं। अत: हमें पढ़ने-लिखने का कोई मौका ही नहीं मिला। बस अपना यही खानदानी काम करते आये हैं और कर रहें हैं। अतः मैं क्या जानूं ये सब बातें।'
यह सुनकर सभी दर्शनशिरोमणि एक स्वर में बोले- अरे ! जैसे तेरे बड़े नाव खेते-खेते मर गए वैसे ही तुम भी एक दिन मर जाओगे। बेकार गया तुम सबका जीवन । अतः लानत है तुम्हारे जीवन पर। '