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शिक्षाप्रद कहानियां
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२९. जैसे को तैसा व्यक्ति की स्वयं की जैसी सोच अथवा दृष्टि होती है, उसे सारी दुनिया वैसी ही दिखाई देने लगती है। संस्कृत में एक श्लोक आता है
तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायश्च तादृशः। सहायतास्तादृशी सन्ति यादृशी भवितव्यता॥
अर्थात् आपकी बुद्धि उसी प्रकार की हो जाती है, जिस प्रकार का आप विचार करते हैं या काम करते हैं। और आपकी सहायता भी फिर उसी प्रकार की होने लगती है, जैसी आपकी होनहार होती है। उसी प्रकार की परिस्थितियाँ निर्मित हो जाती हैं।
हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती है कि 'शक्कर खोरे को शक्कर खोरा मिले।' अर्थात् अगर कोई व्यक्ति मीठा खाने वाला है और वह घर से यह विचार बना कर चले कि मुझे बाहर मीठा खाना है तो उसे अवश्य ही बाहर भी कोई मीठा खाने वाला मिल ही जाएगा। इसी प्रकार यह हर जगह घटित होता है। इसे अंग्रेजी में 'TIT FOR TAT' तथा हिन्दी में 'जैसे को तैसा' भी कहते हैं।
इसी सन्दर्भ में महाभारत काल का एक प्रसंग है। एक बार जब गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पाण्डवों को विद्याध्ययन करा रहे थे, तो उनके मन में विचार उत्पन्न हुआ कि क्यों न इन सबकी विचार-कुशलता और व्यवहार-कुशलता की परीक्षा ले ली जाए? उस समय इसी प्रकार की परीक्षा ली जाती थी। क्योंकि उस समय विद्यार्थी को आज की तरह पैसे कमाने की मशीन नहीं अपितु उसे व्यवहारकुशल बनाने पर अधिक जोर दिया जाता था। यही अन्तर है वर्तमान की शिक्षा और उस समय की विद्या में। कहा भी जाता है कि
लोकव्यवहारज्ञो हि सर्वज्ञोऽन्यस्तु प्राज्ञोऽप्यवज्ञायक एव।
अर्थात् वास्तव में लोक-व्यवहार जानने वाला मनुष्य सर्वज्ञ के समान होता है और लोक-व्यवहार रहित विद्वान् लोक के द्वारा तिरस्कृत