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शिक्षाप्रद कहानिया एक दिन उसके राजदरबार में एक बूढ़ा-सा आदमी आया और उसने राजा से अपना वचन पूरा करने की विनती की। राजा ने आश्चर्य से पूछा, 'वचन? कैसा वचन? किसका वचन? मैंने तो किसी को कोई वचन नहीं दिया।'
यह सुनकर वह बूढ़ा बोला- 'क्या तुम भूल गए कि तुमने अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए किसी को राजगुरु बनाने का वचन दिया था?' मैं वही व्यक्ति हूँ जिसको आपने वचन दिया था।
यह सुनकर राजा आग-बबूला होते हुए बोला- 'ओ बूढे! अगर तूने ये बेकार की बकवास बन्द नहीं की तो मैं तेरी जबान खींच लूँगा। आया राजगुरु बनने पहले अपनी शक्ल तो देख। यह सब सुन बूढ़ा तनिक भी विचलित नहीं हुआ और पुनः राजगुरु बनाने की विनती करने लगा। अब राजा को क्रोध आ गया और उसने सैनिकों को आदेश दे दिया कि- कोड़े मार-मार कर बूढ़े की खाल उधेड़ दो और खूखार जंगली जानवरों के सामने डाल दो, ताकि वे इसे अपना ग्रास बना लें। और उसने बूढ़े को लात मारकर ढकेल दिया।
लेकिन यह क्या? जैसे ही उसने लात मारी कि उसका सारा शरीर झनझना उठा और आँखें बन्द हो गई। और जैसे ही उसने आँखें खोली तो स्वयं को ब्राह्मण के वेश में पाया और सामने उसे वह तान्त्रिक दिखाई दिया। अब उसको बात समझने में जरा भी देर न लगी और वह लगा तान्त्रिक के पैर पकड़कर क्षमा माँगने। अब देखिए दोनों ने ही अपनी तृष्णाओं, इच्छाओं की पूर्ति के लिए महान् पापकर्म का बन्ध किया लेकिन मिला क्या? जन्म-जन्मान्तरों में दुर्गति। इसीलिए कहा जाता है कि तृष्णाओं का अन्त बुरा ही होता है। और इन तृष्णाओं की कभी पूर्ति होती भी नहीं है। यथा- कामैः सतृष्णस्य हि नास्ति तृप्तिर्यथेन्धनैर्वातसखस्य वह्नः।
__ अर्थात् जिसे विषयों की तृष्णा है उसे उस प्रकार तृप्ति नहीं होती जिस प्रकार हवा चलने पर अग्नि की ईन्धन से नहीं।