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शिक्षाप्रद कहानिया किसान तो अपनी योजनानुसार चल रहा था। पटवारी जी की तसल्ली करके वह लाला जी की ओर उन्मुख हुआ और बोला- हाँ जी सेठ जी! जब हम तेरी दुकान पर सौदा लेने जाते हैं तो क्या तुम हमें मुफ्त में सौदा दे देते हो? मुफ्त तो देना दूर की बात डबल पैसे लेकर भी चीज पूरी नहीं देते। रही उधार की बात तो उसमें भी तुम ब्याज लगाकर दो के चार बतलाते हो। फिर बताओ आखिर क्या सोचकर तुमने मेरे खेत से गन्ना तोड़ा?
इतना कहकर भूपसिंह ने लाला जी की भी अच्छी-खासी मरम्मत कर डाली। और छीन लिया अपना गन्ना। पटवारी भी चुपचाप खड़ा रहा कि जब इसने मेरा साथ नहीं दिया तो मैं क्यों इसे बचाऊँ?
इधर पण्डित जी के मन में खूब मोतीचूर के लड्डू फूट रहे थे। वे मन ही मन अतीव प्रसन्न हो रहे थे कि किसान ने इन दोनों की तो अच्छी-खासी मरम्मत कर दी। लेकिन, मेरी तो वह बड़ी इज्ज्त करता है, इसीलिए उसने मुझे कुछ नहीं कहा। लेकिन, यह पण्डित जी का भ्रम था। क्योंकि अगला नम्बर उन्हीं का था।
__ अब किसान पण्डित जी की ओर उन्मुख होकर बोला- हाँ तो पण्डित जी क्या हाल-चाल हैं आपके मुझे कुछ-कुछ ऐसा याद आ रहा है कि आप बच्चों को पढ़ाने के बदले में हम लोगों से भरपूर मात्रा में फसल आने पर सबसे पहले अनाज लेते हैं। और मुझे कुछ ऐसा भी याद आ रहा है कि एक बार सूखा पड़ने के कारण हम आपको अनाज नहीं दे पाए थे तो आपने उस वर्ष मेरे बेटे को पढ़ाया ही नहीं था। तो आपने क्या सोच मेरे खेत से गन्ना उखाड़ा? जरा बताने का कष्ट करेंगे?
पण्डित जी क्या बोलते? किसान जो कह रहा था वह सोलह आने सत्य था। बस फिर क्या था? किसान ने शुरू कर दिया अपना कार्यक्रम और छीन लिया अपना गन्ना। वे दोनों भी चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे, क्योंकि पण्डित जी ने भी तो ऐसा ही किया था।