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शिक्षाप्रद कहानिया कुछ रूपए हैं। और उसने अपने बनियान की अन्दर की जेब से रूपए निकालकर डाकुओं के सामने रख दिये।
यह देखकर डाकू बहुत अचम्भित हुए। तथा डाकुओं का सरदार बोला- बालक! तुम्हारे इन रूपयों का तो हमें पता भी न चलता, फिर तुम भी इन व्यापारियों की तरह झूठ बोल सकते थे और अपने रूपयों को बचा सकते थे।
यह सुनकर बालक सत्यपाल बोला- मेरी माँ ने मुझे हमेशा सत्य बोलने के लिए कहा है। मैंने अपनी माँ की आज्ञा का पालन किया
यह सुनकर डाकुओं पर सत्यपाल की सत्यवादिता का इतना गहरा प्रभाव हुआ कि उन्होंने सत्यपाल के रूपए भी लौटा दिए तथा उसके साथी व्यापारियों को भी रिहा कर दिया। तथा न केवल इतना ही अपितु स्वयं भी आजीवन सत्य बोलने तथा जीवन में कोई भी गलत काम न करने की प्रतिज्ञा कर ली। मित्रों! इसीलिए कहा जाता है कि
नास्ति सत्यात्परं तपः। सत्य से बढ़कर और कोई तप नहीं। सत्यान्न प्रमदितव्यम्। सत्य से प्रमाद मत करो। वरं कूपशताद्वापी वरं वापीशतात्क्रतुः। वरं क्रतुशतात्पुत्रः सत्यं पुत्रशताद्वरम्॥
अर्थात् सौ कुओं से एक बावड़ी का दान अच्छा, सौ बावड़ियों से एक यज्ञ अच्छा, सौ यज्ञों से एक पुत्र अच्छा, सौ पुत्रों से एक सत्य अच्छा ।