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शिक्षाप्रद कहानिया
लेकिन चूहिया कहाँ मानने वाली थी। वह तो अपने स्वभाव से मजबूर थी। घूस गई झाड़ी में और जो होना था वही हुआ जिसका चिड़िया को डर था। चूहिया फँस गई झाड़ी में और हो गई काँटों से लहुलुहान।
जब काफी देर हो गई तो चिड़िया को बड़ी चिन्ता हुई। और लगी चूहिया को ढूँढ़ने। काफी देर की मशक्त के बाद आखिरकार उसने चुहिया को ढूँढ़ ही लिया। उसकी हालत देखकर उसे उस पर बड़ी दया भी आई और गुस्सा भी आया। खैर उसने बिना समय बर्बाद किए सर्वप्रथम उसे अपनी नन्हीं चोंच से पकड़ा और बाहर निकाला और राहत की सांस ली। कुछ क्षण आराम करने के बाद चिड़िया बोली देख बहन मैंने तुझे पहले ही समझाया था न कि झाड़ी से बचकर निकलना है, लेकिन तूने मेरी बात नहीं मानी। अच्छा सुन जो होना था वह हो गया लेकिन आगे से ध्यान रखना।
यह सुनकर चूहिया बोली- अरी बहन तू तो व्यर्थ में दुःखी हो रही है। मैं तो झाड़ी में नाक-कान बिंधवा रही थी।
यात्रा फिर शुरू हुई रास्ते में भैंस का गोबर पड़ा हुआ था। चिड़िया ने फिर चूहिया को सचेत किया। लेकिन वो कहाँ मानने वाली थी। और धंस गई गोबर में।
चिड़िया ने फिर अपना कर्त्तव्य निभाते हुए उसे बाहर निकाला, और फिर उसी बात को दोहराया। जानते हो अबकी बार चूहिया क्या बोली? वह बोली अरी बहन तू तो व्यर्थ ही चिन्ता करती है, तेरी तो आदत ही खराब हो गई है, मैं तो मेंहदी रचवा रही थी। पिकनिक का मजा भी तो लेना है ये थोड़ा ही है कि जैसे घर से आए थे वैसे ही वापस चले जाएं।
यह सुनकर चिड़िया बोली ठीक है, लेकिन आगे ध्यान रखना कहीं अनहोनी न हो जाए।
चूहिया बोली- हाँ ठीक है चलो, आगे चलते हैं। वे कुछ ही दूर आगे गई तो सामने समुद्र था। चिड़िया बोली देख बहन आगे का रास्ता