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विषय
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विषय
कालकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट विषय ३३८ । नामकर्म और उसकी ४२ पिण्डप्रकृतियां क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट विषय विपुलमतिमन:पर्ययज्ञानके छह भेद विपुलमतिमन:पर्ययज्ञानका विषय
प्रकारान्तरसे विषय निर्देश
कालकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट विषय क्षेत्रकी अपेक्षासे जघन्य और उत्कृष्ट विषयका विवरण
मानुषोत्तर शैलसे ४५ लाख योजनका ग्रहण किया है, इस बातका समर्थन केवलज्ञानावरणका निर्देश
केवलज्ञानका स्वरूप निर्देश
केवलज्ञानीका विषय
दर्शनावरणकी नौ प्रकृतियां व उनका
स्वरूप
वेदनीय कर्मकी दो प्रकृतियां मोहनीय कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियां दर्शन मोहनीय कर्मका विचार चारित्रमोहनीय कर्म के दो भेद कषायवेदनीय कर्मके १६ भेद
नोकषाय वेदनीयके ९ भेद आयुकर्म और उसके चार भेद
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प्रस्तावना
तथा उनका स्वरूपनिर्देश
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३४० | गति आदि नामकर्मों के उत्तर भेद ३४१ | नरकगत्यानुपूर्वीकी उत्तर प्रकृतियां ३४२ | तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वीकी उत्तर प्रकृतियां | मनुष्यगत्यानुपूर्वीकी उत्तर प्रकृतियां देवगत्यानुपूर्वीकी उत्तर प्रकृतियां ३४३ | आनुपूर्वीयोंका अल्पबहुत्व पुनः वही अल्पबहुत्व नामकर्मकी शेष प्रकृतियां
३४५ गोत्रकर्म और उसके दो भेद
शंका-समाधान द्वारा गोत्रकर्मके अस्तित्वकी ३४६ | सिद्धि
उच्चगोत्र और नीचगोत्रका लक्षण ३५३ | अन्तरायकर्मकी पांच प्रकृतियां ३५६ | भावप्रकृति के दो भेद ३५७ | आगमभावप्रकृति ३५८ नोआगमभाव प्रकृति
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३५९ प्रकृत में कर्मप्रकृति विवक्षित है, इस बातका ३६० निर्देश ३६१ शेष भंग वेदना के समान है. इस बात की ३६२ | सूचना
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