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विषय-सूची
गाथांक
विषय
१ अरहन्तों की वन्दनापूर्वक बारह प्रकार के श्रावकधर्म के कहने की प्रतिज्ञा। २ श्रावक का निरुक्तिपूर्वक लक्षण। ३-५ जिनवाणी के श्रवण से प्राप्त होनेवाले गुण। ६ पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतरूप बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निर्देश। ७ श्रावकधर्म की मूल वस्तु के रूप में सम्यक्त्व का उल्लेख तथा उसके तीन भेदों का निर्देश। ८ सम्यक्त्व के प्रसंग में प्रथमतः जीव एवं कर्म के संयोग के कहने की प्रतिज्ञा। ९ ज्ञानावरणादि कर्मों से संयुक्त अनादिनिधन जीव का निर्देश करते हुए कर्म के आठ भेदों की
सूचना।
१०-११ कर्म की मूल प्रकृतियों का नामनिर्देश। १२-२६ यथाक्रम से उनकी उत्तर प्रकृतियों के नाम। २७-३० अष्ट कर्मों की उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति। ३१-३३ उक्त स्थिति से युक्त कर्म की स्थिति में कुछ नियमित स्थिति के क्षीण होने पर जीव के
अभिन्नपूर्व ग्रन्थि के होने का निर्देश करते हुए उसके भेदन में सम्यक्त्व की प्राप्ति की सूचना। ३४-४२ सम्यक्त्वप्राप्ति के विषय में शंका और उसका समाधान। ४३ सम्यक्त्व के क्षायोपशमिकादि तीन भेदों का निर्देश करते हुए उसके कारक आदि अन्य भेदों
की सूचना। ४४ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व का स्वरूप। ४५-४७ औपशमिक सम्यक्त्व का स्वरूप और उसकी प्राप्ति।
४८ क्षायिक सम्यक्त्व का स्वरूप। ४९ कारक और रोचक सम्यक्त्व का स्वरूप। ५० दीपक सम्यक्त्व का स्वरूप। ५१ मिथ्यात्व परमाणुओं के उस प्रकार के क्षयोपशम आदि के कारण सम्यक्त्व की विचित्ररूपता।
५२ उपाधि के भेद से सम्यक्त्व के अन्य दस भेदों का निर्देश। इन्हीं में उनके अन्तर्भाव की सूचना। ५३-५९ आत्मपरिणामस्वरूप उस सम्यक्त्व के अनुमापक उपशम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और
आस्तिक्य इन चिह्नों के निर्देशपूर्वक उनका पृथक्-पृथक् लक्षण। ६० सम्यग्दृष्टि के उक्त प्रशमादि परिणामों से संयुक्त होने का निर्देश। ६१ निश्चय नय की अपेक्षा मुनिवृत्त और सम्यक्त्व की अभेदरूपता तथा व्यवहार नय की अपेक्षा
सम्यक्त्व हेतु के भी सम्यक्त्व का निर्देश। ६२ तत्त्वार्थश्रद्धान को सम्यक्त्व का लक्षण बतलाते हुए उसके होने पर नियमतः प्रशमादिकों के
सद्भाव की सूचना।