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-२३२] बालादिवविषयकदुरभिप्रायनिराकरणम्
१३७ इय एवं परिणामाबन्धे सति बालो वृद्ध इति स्तोकमिदमत्र हिंसाप्रक्रमे। किमिति ? बालेऽप्यसौ न तीव्रः परिणामः कदाचिद्वद्धेऽपि तीव्र इति, जिघांसतामाशयवैचित्र्यादिति ॥२२९॥
अह परिणामाभावे वहे वि बंधो न पावई' एवं ।।
कह न वहे परिणामो तब्भावे कह य नो बंधो ॥२३०॥ अथैवं मन्यसे परिणामाभावे सति वधेऽप्यबन्ध एव प्राप्नोत्येवं परिणामवादे एतदाशङ्कयाह-कथं न वधे परिणामः ? किं तहि ? भवत्येवादुष्टाशयस्य तत्राप्रवृत्तेः। तद्भावे वधपरिणामभावे । कथं च वधे न बन्धो बन्ध एवेति ॥२३०॥
सिय न वहे परिणामो अन्नाण-कुसत्थभावणाओ य ।
उभयत्थ तदेव तओ किलिहबंधस्स हेउ त्ति ॥२३१॥ स्यान्न वधे परिणामः क्लिष्टः । अज्ञानात् अज्ञान व्यापादयतः, कुशास्त्रभावनातश्च यागादावेतदाशङ्कयाह-उभयत्र तदेवाज्ञानमसौ परिणामः क्लिष्टबन्धस्य हेतुरिति सांपरायिकस्येति ॥२३१॥
जम्हा सो परिणामो अन्नाणादवगमेण नो होइ।
तम्हा तयभावत्थी नाणाईसु सइ जइज्जा ॥२३२॥ ___ इस प्रकार-पूर्वप्रदर्शित युक्तिसंगत विचारके अनुसार-परिणामसे बन्धके सिद्ध होनेपर बाल अथवा वृद्ध यह इस प्रसंगमें स्तोक मात्र है-वे हिंसाकी हीनाधिकताके कारण नहीं हैं। कारण यह है कि बालकके वधमें भी कदाचित् वह तीन संक्लेश परिणाम न हो और कदाचित् वृद्धके वधमें वह तीव्र संक्लेश परिणाम हो सकता है। यह सब मारनेका विचार करनेवाले व्यक्तियोंके अभिप्राय विशेषपर निर्भर है ॥२२९॥ ...
आगे प्रसंगानुरूप शंकाको उठाकर उसका समाधान किया जाता है
इस प्रसंगमें यदि यह कहा जाये कि इस परिस्थितिमें परिणामके अभावमें-वधके संकल्पके विना-वधके करनेपर भी बन्ध नहीं प्राप्त होता है-उसके अभावका प्रसंग प्राप्त होगा, इस शंकाके समाधान में पूछा जाता है कि जोवघातके करनेपर तद्विषयक परिणाम ( संकल्प ) कैसे न रहेगा? वह अवश्य रहनेवाला है। क्योंकि दुष्ट अभिप्राय बिना प्राणी कभी जीववधमें प्रवृत्त नहीं होता। और जब वैसा परिणाम रहेगा तब उसके रहते हए वह बन्ध कैसे नहीं होगा? अवश्य होगा ॥२३०॥
आगे प्रसंगप्राप्त दूसरी शंकाको उठाकर उसका भी निराकरण किया जाता है
यदि यहाँ यह कहा जाये कि वध करनेवाला चूंकि अज्ञानतासे अथवा मिथ्यात्वके पोषक कुशास्त्रोंके चिन्तनसे उस वधमें प्रवृत्त होता है, अतः उसका उसमें परिणाम नहीं रहता है। इससे उसके बन्ध नहीं होना चाहिए। इसके उत्तरमें कहा गया है कि दोनों जगह-अज्ञानता या कुशास्त्रके विचारसे किये जानेवाले वधमें-जो अज्ञान है वही उस संसारपरम्पराके कारणभूत क्लिष्ट बन्धका कारण होता है ॥२३१॥
इसीलिए आगे ज्ञानके विषय में प्रयत्नशील रहनेकी प्रेरणा की जाती है१. अ भावे हि बंधो त्ति पावती । २. अ कह ण विहे परिणामो तहावे कह ये णो बंधो।
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