Book Title: Samyaggyanchandrika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 9
________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका मंगलाचरण, सामान्य प्रकरण प्रथमानुयोग पक्षपाती का निराकरण योग पक्षपात का निराकरण द्रव्यानुयोग पक्षपाती का निराकरण शब्दशास्त्र पक्षपाती का निराकरण पक्षपाती का निराकरण काम भोगादि पक्षपाती का निराकरण areerयास की महिमा taurus संबंधी प्रकरण कर्मकाण्ड संबंधी प्रकरण प्रकरण वणारा जंबंधी प्रम परिकर्माष्टक संबन्धी प्रकरण मंगलाचरण व प्रतिशा भाषा टीकाकार का मंगलाचरण ग्रन्थकर्ता का मंगलाचरण व प्रतिज्ञा बीस प्ररूपणार्थी के नाम व सामान्य कथम पहला अधिकार : गुणस्थान- प्ररूपणा गुलस्थानं और तद fare श्रदायिक भावों का कथन मिध्यात्व का स्वरूप सासादने का स्वरूप सम्यग्मिया का स्वरूप असंगत का स्वरूप संपत का स्वरूप प्रमत का स्वरूप अप्रमत का स्वरूप पूर्वकरण का स्वरूप प्रवृत्तिकरण का स्वरूप सूक्ष्मसराय का स्वरूप विषय-सूची १-६८ १ ५. ६ & ११ १२ १३ १५ १७-३० ३१-४० ४६-४७ ८० (५ ५५-६८ ६६-८६ ६६०७५ ७५-८१ ८१-८६ ८६-१७६ ८६-- ६१ ६१-६५ ६५-६६ ६६-१८ ६८-१०३ १०५-१०४ १०४-१३२ १३२-१५३ १५३-१५६ १५६-१६० १६०-१६७ उपशतिकषाय का स्वरूप क्षीकषाय का स्वरूप सयोगकेवली का स्वरूप प्रयोगकेवली का स्वरूप सिद्ध का स्वरूप " दूसरा अधिकार : जीवसमास-प्ररूपणा जीवसमास का लक्षण जीवसमास के भेद योनि अधिकार श्रवगाना अधिकार तीसरा अधिकार : पर्याप्ति प्ररूपणा प्राण-प्ररूपणा प्राण का लअण, भेद, उत्पत्ति की सामग्री, स्वामी सधा एकेन्द्रियादि जीवों के प्राणों का नियम पांचवा अधिकार : संज्ञा - प्ररूपणा १६७-१६० १६८ १६८ - १६९ १६६-१७६ १७६-१७९ १५०-२३४ १००-१८२ १८३-१९१ rettes aftera ein द्वारा पर्याप्त अपर्याप्त का स्वरूप व भेद २६८-२७० पर्याप्ति मिति श्रपर्याप्ति का स्वरूप २७०-२७२ लब्धि तक का स्वरूप चौथा अधिकार : २७२-२७६ gori अधिकार : गतिमार्ग-प्ररूपणा १६१-१६८ १६८-२३४ २३५-२७६ २३५ - २६८ २७७-२८० संज्ञा का स्वरूप, भेद, श्राहारादि संज्ञा का स्वरूप तथा संज्ञाओं के स्वामी मंगलाचरण और मार्गणाधिकार के वर्णन की प्रतिज्ञा मार्गणा शब्द की निरुक्ति का लक्षण २७७-२८० २६१-२८३ २५१-२८३ २४-३०६ २८४ २०४

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