Book Title: Samyaggyanchandrika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 8
________________ ३२. श्री कपूरचन्द राजमल जैन एवं परिवार लवारण ३३. श्री छोटेलाल सतीशचन्दजी जैन इटावा ३४. श्रीमती रंगूबाई ध.प. श्री उम्मेदमलजी भण्डारी सायला ३५. श्रीमती केसरदेवी घ.प. श्री जयनारायणजी जैन फिरोजाबाद ३६. श्री सुहास वसंत मोहिरे बेलगांव ३७. श्री वीरेन्द्रकुमार बालचन्द जैन पारोला ३८. श्रीमती केसरदेवी बण्डी उदयपुर ३६. श्री मारणकचन्द प्रभुलालजी कुरावड़ ४०. श्रीमती रत्नप्रभा सुपुत्री स्व. श्री ताराचन्दजी गंगवाल जयपुर ४१. श्री मारणकचन्द प्रभलालजी भगनोत कुरावड़ ४२. श्री नेमीचन्दजी जैन भगरोनी वाले शिवपुरी ४३. स्व. श्रीमती कुसुमलता एवं सुनंद बंसल रमति निधि हस्ते डॉ. राजेन्द्र बंसल अमलाई ४४. श्री जयन्ति भाई धनजी भाई दोशी दादर बम्बई ४५. श्रीमती धुडीबाई खेमराज गिडिया बैंगगढ़ ४६. चौ० फूलचन्दजी जैन बम्बई ४७. फुटकर ५०१.०० ५०१.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० ५००.०० १११.०० १०१.०० १०१.०० ५७७२.०० योग ३२८२०.०० हे भव्य हो ! बास्त्राभ्यास के अनेक अंग हैं। शब्द या अर्थ का वाचन या सीखना, सिखाना, उपदेश देना, दिद्यारना, सूनना, प्रश्न करना, समाधान जानना, बारम्बार चर्चा करना इत्यादि अनेक अंग हैं.-वहाँ जैसे बने तसे अभ्यास करना । यदि सर्व शास्त्र का अभ्यास न बने तो इस शास्व में सुगम या दुर्गम अनेक प्रयों का निरूपण है, यहां जिसका बने उसका अभ्यास करमा । परन्तु अभ्यास में पालसी न होना। -पं० भागचन्द जी

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