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शिशुपालवध में सन्धियोजना
सुषमा कुलश्रेष्ठ महाकाव्य का लक्षण प्रस्तुत करते समय आचार्यों ने स्पष्ट निर्देश किया है कि महाकाव्य को भी नाटक के समान पञ्च सन्धियों से समन्वित होना चाहिये । भामह के अनुसार महाकाव्य सगैबन्ध, महान् चरित्रों से सम्बद्ध, भाकार में बड़ा, ग्राम्य शब्दों से रहित, अर्थसौष्ठव से सम्पन्न, अलङ्कारयुक्त, सरपुरुषाश्रित, मन्त्रणा, दूत-सप्रेषण, अभियान, युद्ध, नायक के अभ्युदय एवं पंच सधियों से समन्वित, अनतिन्याख्येय तथा ऋद्धिपूर्ण होता है।' दण्डी ने भी उल्लेख किया है कि महाकाव्य के सर्गों में कथा की संधियों का निर्वाह किया जाता है। कथावस्तु में अपेक्षित अंशके ग्रहण तथा अनपेक्षित अंश के त्याग के लिए नाटक में सधि-योजना का विधान था । कथावस्तु का एक नपातुला सुश्लिष्ट रूप इन संधियों से बनता है। रुद्रट ने भी महाकाव्य में संश्लिष्ट संधियों की योजना का निर्देश किया है। आनंदवर्धन ने भी अभिनेयार्थ तथा अनभिनेयार्थ समी प्रबन्धकाव्यों में संधि तथा सन्ध्यङ्गो की रसानुसारिणी घटना को आवश्यक बताया है क्योंकि कथाशरीर को पञ्च संधियों तथा उनके मङ्गों का रसाभिव्यञ्जन में पर्याप्त योगदान है । विश्वनाथ ने भी महाकाव्य के लिए शृङ्गार, वीर, शांत में से किसी एक रस के मङ्गी तथा शेष सभी रसों एवं नाटक सधियों के अङ्गरूप में निर्वाह करने का निर्देश किया है।
१. काव्यालङ्कार (मामहप्रणीत)--
सर्गअन्धो महाकाव्य महता च महच यत् । अप्राम्यशब्दमर्थ्यञ्च सालद्वार सदाश्रयम् ॥ मन्त्रवृतप्रयाणाजिनायकाभ्युदयैश्च यत् ।
पञ्चभिः सन्धिभियुक्त नातिव्याख्येयमृद्धिमत् ॥१११९-२० २. काव्यादर्श-सगैरनतिविस्तीर्णैः भव्यवृत्त सुसन्धिमिः ।
सर्वत्र मिनवृत्तान्तरुपेत लोकरजकम् ॥१।१८ १९ ३. काव्यालगर (लाटप्रगीत)
सन्धानपि सश्लिष्यस्तेषामन्योन्यसम्बन्धात् ।१६१९ ४. ध्वन्यालोक-सपिसन्ध्याघटन रसाभिव्यकश्यपेक्षया ।
न तु केवलया शास्त्रस्थितिसम्पादच्या ॥३१२ ५. साहित्यदर्पण-न्यारवीरशान्तानामेकोशी रस इष्यते ।
अहानि सर्वेऽपि रसाः सर्वे नाटकसन्धयः ।।६।३१०