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समाजविचारक मनु जिक कर्तव्य अने उत्तरदायित्वनो मा रीते योग करीने समाजजीवननी विभिन्न क्षेत्रोनी जरूरियातोनी पूर्तिनी ज छे । आने लीधे निदान मनुमा तो, ज्यारे ए एम कहे के :
न कदी मारवो विप्र सर्वपाप कर्या छता,
करवो राष्ट्रथी दूर समग्र धन साथ दै (८.३८०) त्यारे खरेखर ब्राह्मणने शरीरथी न हणतो समाज तेने जीवतो राखीने य तेने वधु आकरी सजा करे छे, कारण, एवो ब्राह्मण ब्राह्मणत्वमाथी ज अधःपतित थाय छे । महाभारत कहे छे के अश्वत्थामाना माथानो मणि लई लेवामां मान्यो त्यारे तेनो अर्थ आपणे तेनु ब्राह्मणत्व अने तेनो सामाजिक दरज्जो खूचवी लेवामा आव्यां एवो करीए तो ते खोटुं नथी.
आ साथे ए पण स्पष्ट छे के चारेय वर्णोना धर्मों मनु वर्णवे छे त्यारे तेने मन चातुर्वण्य एटले ज आर्यत्व एवो अर्थ छे अने चांडाल तथा पारशव सुधीना तमाम अतिशूद्रो पण आर्यों ज छ । वास्तविक रीते मनुमा अनार्यों छे (अ) परदेशीमो अने (ब) वनवासी प्रजाओ अथवा आदिवासीओ, अने तेथी ज ते मार्योना 'धर्मों वर्णवे छे त्यारे तेमा विगते शूद्रोना धर्मो पण वर्णवाय ज छे । (४) व्यक्ति अने समाज
मनु भने अन्य धर्मशास्त्रकारो कोई आधुनिक समाजशास्त्रनी पद्धतिए समाजजीवननी समस्याओनी चर्चा करता नथी । तेमनी पद्धति जुदी छे । विभिन्न विषयोने अनुलक्षीने व्यक्तिना संबंधे विचारतां तेमो विधि-निषेधो रूपे पोताना विचारो रजू करे छे, केटलीक वार सामान्य विचारणा पण आपे छे, आ छतां तेमना निरूपणमाथी सामाजिक सरचना, व्यक्ति अने समाज, सामाभिक नियंत्रण, वगेरे आजना समाजशास्त्रने अभिमत विषयो परना तेमना विचारो तारवी शकाय तेम छे । 'व्यक्ति भने समाज' ए प्रश्न बाबत मनुनो विचार हवे आपणे समजवा प्रयत्न करीए ।
मनु जे रीते लग्न, वर्ण, आश्रम, जूथ, राज्य, अदालत, प्रायश्चित्त, शुद्धि वगैरेनी मीमांसा करे छे त्यारे पद्धति छे व्यक्तिने केन्द्रमा राखी तेना धर्मनी दृष्टिए चर्चा करवानी । आम, मनुनी नजर समक्ष सामाजिक जूथो, एकमो अने समाज स्थिर छे, व्यक्ति बदलाती छे । तेथी एम पण लागे के तेनी समक्ष मुख्यतः व्यक्ति छे, समाज नहीं । आ व्यक्ति आश्रम, वर्ण, जाति, गण, वगेरेनी सभ्य छ राज्य, देश, वगैरेनी सभ्य छे, राज्यना कायदा पण व्यक्ति पर नियंत्रण लादे छे । मनु मा सर्वना सबंधे व्यक्तिना धर्मोनी चर्चा करे छे, तेनां कर्तव्योनी मोमांसा करे