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कनुभाई शेठ
बजाओ रमुजी प्रसगो के स्थानिक कथाभो इत्यादि ज केम पसद करे छे. ज्यारे घणी बधो कथाओनो पृथक्करणनो दृष्टिए तथा पूर्वे घडायेली कोई पद्धति विना अभ्are करायो होय तो लोककथाना जीवन- इतिहासना सदर्भमा भाषाकीय सीमाभनी अने भाषाकीय कुळोनी अगत्य प्रमाणवानुं शक्य बने छे. दा. त. ॐ मा तथ्य भारतीय - आर्य कुळ अने अमुक प्रदेशोमां जे कथाओ प्रचलित छे ते बन्ने ये कोई वास्तविक सह- सबध होवानुं सूचवे छे !
कथात्मक शैलीनो प्रश्न परम्पराप्राप्त कथाभोना संदर्भमां भाग्ये ज विचारायो छे शुं भारत अने नजीकना पूर्वनो कथाभो पश्चिम युरोपनी सरखामणीमां कथा वस्तु परत्वे अल्पप्रमाणमा एकता अने स्वरूप परत्वे अल्प चोक्कसाई दर्शाने
? असावध अवलोकनथी आम लागशे. पण निष्ठापूर्वकना अभ्यास थी जणाशे के आ बात साची नथी. आ मत साचो होय तो तेनो एक अर्थ ए. थाय के पूर्वमा कथाओ हजो पण जीवंत सघटना छे अने पश्चिममां ते अमुक नियत घाटमां ढळाई गई छे अने एणे पोतानी सजीवता गुमावी दीघी छे अथवा तो शुं एनो अर्थ ए छे के एकत्वयुक्त कथाभो जेम युरोप तरफथी पूर्व तरफ संक्रमण करती गई तेम तेम खण्डित थती गई ? केटलीक कथाओना प्रसरणना अभ्यास साथै एमनुं शैलीगत अन्वेषण संकळाय तो वस्तु परम्परागत कथानकना सामान्य इतिहासमां आवी बाबत स्पष्ट करी आपे.
ऐतिहासिक भौगोलिक पद्धति प्राथमिक रीते कथातत्त्व साधे सकळायेली छे. आ अन्वेषण दर्शाने छे के कलेवर भले परिवर्तन पामतुं रहे पण कथावस्तु स्थायी रहे छे. हो या साचे ज सत्य होय तो, लोकवृत्तना पाडेला भेद - प्रमेद [दाखला तरीके परोकथा अने लेोकगाथा [Saga] अथवा [Hero-tale]नुं कोई अमुक व्यक्तिगत कथानां जीवन इतिहासना निरूपणमां कोई महत्त्व रहेतुं नथी. पण या मेद प्रमेद पोते एक बीजाना संदर्भमां महत्वना छे.
ग्रीन्स के कोस्कांमां रजू थयेली पश्चिम युरोपनी कोई आदर्शरूप कथामां अमुक खास लाक्षणिक शैली होय छे, म शैलीनो ऐतिहासिक तथा भौगोलिक क्षेत्र विस्तार केटलो ? बळी मा शैली ने अनुरूप एवा कथा रूपान्तरने परीकथा एवं नाम आपीए तो आपणने ए प्रश्ननो सदा सामनो करवानो रहेशे के अमुक कथा क्यारे परीकथा हती अने क्यारे न हती. अने शैलीनी अपेक्षाए अमुक रूपा