________________
कनुभाई शेठ 'सीन्डोला' ना अभ्यास अंगेनु कार्य, रूपान्तरोना संग्रहण तथा सूत्रोना विश्लेषणनी बाबतमा यथार्थता दर्शावे छे. पण मा रीते एकठी थयेली आधार-सामग्रीन अर्थघटन करवानो कोई प्रयास करवामां आव्यो नथी. ज्यारे अन्य अभ्यासकोए पण मूळ अने अप्रर्याप्त प्रमाणमां प्राप्त रूपान्तरोना सम्प्रसारण मंगे ज' चर्चा करी छे. आ वात मां बेन्फे अने कोस्का, जेने साहित्यिक परम्परामा-खास करीने भारतथी आवेली साहित्यिक परम्परामां-मुख्य रस हतो, ए परत्वे ज नहीं पण हेटलेन्डना 'लीजेन्ड मोफ पश्येस' [the legend of perseus] जेवा नमुनारूप कार्य अंगे पण आ वात एटली ज साची छे.
छेल्लां त्रीस वर्षनी कथाओनुं निरूपण चुस्तपणे मा पद्धतिने अनुसरीने ज नथी यु. वानस्योडो अने तेना शिष्यमंडळे आ अभ्यासमां बे एक बाबतमा मुधारणा पण करी छे. तेमओए कथाओना समूहोनो एकत्रित अभ्यास एमनां मांतरसंबंधनी सजीवताने प्रमाणित के अप्रमाणित करवा अर्थे कयौँ हतो अने एमनो मुख्यरस कथाना अंतिम मूळरूपनी स्थापना करवाना प्रयास परत्वे नहीं पण एमना Oikotype ना सशोधनमा हतो. अने मा अभ्यासनो आधार मुख्यवे ए धारणा पर हतो के अमुक प्रदेशना Oikotype ना लक्षणो मूळ केन्द्रथी बयेला सम्प्रसारण ने कारणे नहीं पण वृद्धमान्य आदिकालथी प्राप्त वारसाने कारणे होय छे.
कथा पर लखायेला अन्य प्रबंधो भावी न रीते अन्य मान्यताना के सिद्धान्तना भोग बन्या छे. आना उदाहरणमां तेगेथोफ [Tegethoff] द्वारा करवामा भाषेला 'क्युपीड अने साईको' कथाना अभ्यासने आपी शक्राय. एमां कुशळतापूर्वक विश्लेपण थयु छे. पण कथानु मूळ स्वप्न अनुभवमा होवानुं करवामां मावेलं अर्वघटन भाग्ये ज प्रतीतिकर लागे छे. ए ज प्रमाणे Bokleni Snowhite नी कमा मंगेर्नु निरूपण अत्यंत असतोषकारक छे. एना रूपान्तरोनो संग्रह अपर्याप्त छे. अने पनी अर्थघटन करवानी पद्धति अव्यवस्थित अने निरंकुश छे. आ संदर्भमां कथानो व्यवस्थितपणे अभ्यास थाय ते इच्छनीय छे.
पूर्वे जेमणे आ ऐतिहासिक-भौगोलिक पद्धतिनो विनियोग करी लोककथामो मंगे महत्वना प्रबंधो लक्ष्या छे, ते बघाए एनो संपूर्ण स्वरूपमा प्रयोग कर्यो नथी. पण मा पद्धतिना वधु भने वधु प्रयोजन बजे ते आलेखित थया छे. शक्य एटला वधु प्रमाणमा रूपान्तरो एकठा करवान दस्तावेजी कार्य अने कथानी एक पछी एक