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कृष्णकुमार दीक्षित रीते मुश्कलीनो उकेल सूचव्यो छे, कारण के त्या आपणने आ के तें जातनां कृत्योजेमांना केटलांक देखीती रीते ज सारां छे भने केटलाक नरसां छे-द्वारा बंधातां कर्मोंना भेद-प्रमेदो विशे का छे. तेम छतां खरेखर तो मुश्केली अणउकली ज रहे छे कारण के आवी रीते गणावेलां सुकृत्योने केवी रीते अवत, कषाय, इन्द्रियविषयभोग के क्रियानो प्रकार गणी शकाय ? उमास्वातिने न्याय करवा आपणे स्वीकार जोईए के आ मुश्केली तो कर्मसैद्धान्तिकोए करेल आ समस्याना निरूपणमां पण रही छे ज, कारण के तेमणे स्पष्टपणे सुकृत्यो (-शुभकर्मो) अने दुष्कृत्यो (अशुभ कमों) एवो विभाग (जे विभागनी नोध उमास्वातिए सूत्र ८. २६ मा लोधी छे) कर्यो छे भने उमास्वाति सूत्रो ६.११२६ मा तेमने ज केवल अनुसर्या छे, तेम छतां कर्मबन्धना हेतुभूत कृत्योनी कर्मसैद्धान्तिकोनी प्रमाणभूत (standard) सूचीमां तो केवळ दुष्कृत्यो ज छे-जेम उमास्वातिए घडेली यादीमां छे तेम; आ प्रमाणभूत सूचीमां मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय अने योग (८.१.) छे, जेमांना प्रथम चार दुष्कृत्यरूप ज छे ज्यारे पांचमो योग-जेनो अर्थ केवळ कृत्य छे-आचारशास्त्रीय दृष्टिए सारो के नरसो नथी, तटस्थ छे; योगने सूचीमा गणाववानु प्रयोजन ए छे के तेनाथी मादर्श साधुना ए कृत्यो जे कर्मबन्ध करवा छतां पुनर्भवनु कारण नथी तेमने आवरी लेवाय. कोई दलील करे के आ यादोमां गणावेल विषयोनो (items) क्रम तेमनी उत्तरोत्तर मोठी अने मोछी दुष्टतानो निर्देशक छ, परन्तु आ वात उमास्वातिनी सूची बाबतमा साची नथा. अथवा तो तेम होई पण शके, परन्तु आ यादोगत बधां ज विषयो दुष्कृत्यरूप ज होवाथो उमास्वातिनी सूची विरुद्ध जे आपत्ति उठ ववामा आवी छे ते कर्मसैद्धान्तिकोनी आ सूची विरुद्ध पण रहे छ ज. एम तो न ज कही शकाय के उमास्वातिने पुण्यकर्मना बन्धनी समस्यामां कई खास रस न हतो, कारण के धर्मनिष्ठ श्रावकना आचारने तेमणे महत्व आप्यु छ; अने धर्मनिष्ठ श्रावकनो आचार (साधुना आचारनी जेम मोक्षदायक नथी) पण शुभ जन्म या स्वर्ग- कारण छे एवं मानी लेवामां आव्यु होईने एने महत्त्व आपवानी साथे ज आ समस्या विशाळ पाये ऊमो थाय छे. आ कारणे नवतत्त्वसिद्धान्ते मानव मने संवरनी साथे साथे पुण्य अने पापने पण स्वीकार्या'; अने आ कारणे ज तत्त्वोनी सूचीमा पुण्य भने पापने न गणवा छतां उमास्वातिए विस्ताग्थो श्रावकाचारनु निरूपण कयु, मा वस्तु एनो रीते प्रकाश फेंकनारी छे. आम उमास्वाति सातमो