________________
30
रमेश घेठाई उत्तमांगथी ए जन्म्यो वेदाभ्यासीय ए, बने
सृष्टि आखीयनो बीजी धर्मथी प्रभु ब्राह्मण.(१.९३)
भने सामाजिक दरज्जामां मा पछी मनु क्षत्रिय किंवा राजन्य, वैश्य भने शूद्रने मूके छे. आ ख्याळना अनुसरणमा ज अनुलोम अने प्रतिलोम विवाहोना परिणामे जन्मती प्रजा मा चार वर्णोमां पण आन्तरिक ऊचो अने नीचो दरज्जो ऊभो करे छे, अने आ रीते मनु तत्कालीन समाजनो वास्तविकताने अनुसरतां सामाजिक दरज्जा बाबत स्वीकारीने चाले छे के समाजमा मानव तरीके सौ समान होवा छता सौनो सामाजिक दरजो समान नथी, ओछों वत्तो छे, ऊंचो-नीचो छे. आ साथे नोधपात्र ए छे के निदान मनुमां तो ए स्वीकारायु ज छे के सामाजिक दरग्जो अने सामाजिक उत्तरदायित्व वच्चे अविनाभाव संबंध छे । तेथी समाजमां जेम व्यक्ति भने वर्णनो दरज्जो ऊंचो अने प्रतिष्ठिा वधु तेम तेनी समाज प्रत्ये जवाबदारी वधु । आ कारणे ज शूद्र बाबत मनु कही शके छे :
पातक शूद्रने को'ना संस्कारे अधिकार वा,
अधिकार न धर्मे वा धर्मनो प्रतिषेध ना. (१०.१२६) परंतु आq ते ब्राह्मण के क्षत्रिय ने माटे न कही शके । अलबत्त आपणे उपर जोयु छे तेम मनु संक्रांतिना समयनो एवो स्मृतिकार छे तेथी जन्म भने कर्म बने द्वारा वर्णनो सिद्धांत स्वीकारे छे, जन्म द्वारा वर्ण तरफ तेनो निश्चित शोफ देखाय छ । छतां दरेक वर्ण पोतार्नु सामाजिक उत्तरदायित्व जाळववामां जाग्रत रहे ए बाबत ते अति आग्रही छे । अने तेथी ज ऊँचा-नीचा सामाजिक दरज्जा साये सामाजिक उत्तरदायित्व तेणे जोड्युं छे । आ साथे आग्रह तो छ न के दरेक वर्ण अने तेमांनी दरेक जाति पोतपोताना व्यवसाय, कर्तव्य अने धर्मनी मर्यादामा रहीने ज उत्कर्ष साधे. आ कारणे ब्राह्मण के शूद्र पोताना वारसागत, संस्कारगत, विशिष्ट व्यवसाय भने कर्तव्यनु आचरण न करे त्यारे व्यभिचार थाय एवी मान्यता मनु धरावे छ । समाजनी सर्वक्षेत्रीय आवश्यकताओ पूरी पाडवा माटे तेने भा ज उपाय देखाय छे माटे ज ते स्पष्टपणे कहे छे के:
व्यभिचारथी वर्णोना, अविवाह्य विवाहीने, स्वकर्मना वळी त्यागे जन्मता वर्णसंकर । (१०२४)
आथी आपणे मनुए ब्राह्मणने जे विशेष अधिकारो आप्या छे तेने ज परिणामे कहोए के मनु ब्राह्मणोना सामाजिक प्रमुत्वना युगमां थयो छे तो पण तेनो दृष्टि सामान