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समाजविचारक मनु (१) प्राचीन युगनो भारतीय तेना वर्तमान जीवन- सुख गमे तेटलं अनुभवे ते छतां जीवनना तेना विशाळ ख्यालने अनुलक्षीने तेने पोताना आ जीवन करता मा जीवन पछीना जीवननी चिन्ता सतत वधु रहेती।
(२) आने लीधे तेनां आ जीवननां तमाम कार्यों तेनो एवो मनोवृत्तिथी घडातां, घडाई शकतां के तेनुं पारलौकिक जीवन सुधरे, उत्कृष्ट भने धन्य बने ।
(३) तेना जीवनमा आ जीवन प्रत्ये ताटस्थ्य अने केक उदासीनतानी वृत्ति रहेती।
(४) तेना जीवन पर सत्कर्म, शुद्धि, पवित्रता, गुणार्जन, सात्विक जोवन, धार्मिकता, प्रभुपरायणता वगेरेनो प्रभाव आ कारणे ज रहेनो।
(५) जीवनमा नियतिवाद, पलायनवृत्ति, पुरुषार्थ तथा पराक्रम प्रति उदासीनता वगैरे पण आना ज परिणाम हतां ।
(६) भारतमा वर्ग-विग्रह, धर्मयुद्धो के क्रान्ति नथी थयां अने तनी अस्मिता भूसी नाखनारो परिस्थितिमा पण आनो ज आधार लइ भारतीय टको रह्यो छे ते आने ज लीधे ।
(७) स्वकर्मपरायणता तथा जीवनना सौ आनन्दोना उपभोग, बन्नेनी दृष्टिए ते विशेष प्रमाणमा व्यक्तिवादी रह्यो छे ते आने लीधे ज ।।
(८) लोकसंग्रहना कामो सतत कर्या करवा छतां समग्र समाजना कल्याणमां आत्मकल्याणर्नु विलोपन करनारा भारतमा बहु ओछा नीकळया छे, दरेकने विशेष चिन्ता आत्मकल्याणनी रही छे, ते पण आने ज परिणामे ।
समाजना गूढ निरीक्षणने परिणामे मनुनी पोतानी विवारणाए जमा झोक समग्र धर्मशास्त्रने आप्यो छे । भने आने लीधे ज नरको (अध्याय ११), श्रादादि (अध्याय ३), पंचमहायज्ञ (अध्याय ३), प्रायश्चित्तो (अध्याय १०), शुद्धिमओ (अध्याय ११) वगैरेनी विस्तृत चर्चामीमांसा आपणने मनुमा मळे छे । वळी बारमा अन्तिम अध्यायमां आ रीतना धर्मपालनने अनुसरनारी व्यक्तिना जीवनने मनु आचारपरायणता तरीके ओळखे छ (१२. २) अने एनी मोमांसा विस्तारथी करे छे (१२. ३ थी भागळ)। मामां सत्कर्मोथी मळता सज्जन्म अने दुष्कर्मोथी मळता हीन जन्मनी चर्चा पण करवामां आवी छे । एम कहेवामा आव्यु छे के विशेष धर्माचरण अने अति अल्प अधर्माचरण थकी स्वर्गनी प्राप्ति थाय छे (१२ २०)। जीवनमा कर्मो कल्याणकर कई रीते बने ते पण तेणे निर्देश्यु छे (१२.८३) । दुष्क