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समाजविचारक मनु
रमेश बेटाई प्राचीन परंपरामां बे उक्तिओ जाणीतो छ के "मनु जे कंइ कहे ते उत्तम औषध छे'' अने "मनुना अर्थथी जे स्मृति जुदी पडे ते प्रशस्य नथी."" मनुने नामे जाणीता उपलब्ध ग्रंथने 'मनुस्मृति' अथवा 'मानवधर्मसूत्र' कहे छे तो धर्मशास्त्रपरंपरामा 'मानवधर्मसूत्र' नामक अत्यारे अनुपलब्ध एवो ग्रंथ पहेलां हतो ज एम मानवामां आवे छे । 'मनुस्मृति' पर अनेक टीकामो लखाई छे भने छ टीकामो तो ख्यातनाम छे ते पण आ ग्रंथना परंपरागत महत्त्वनी धोतक हकीकत छ। याज्ञवल्कय तेनी स्मृतिमा धर्मशास्त्रना ग्रंथकारोनी परंपरामा पहेलो मनुने मूके छे (याज्ञवल्कचस्मृति १.५) वळी तमाम अनुगामी स्मृतिमओ मनुने ज परमप्रमाण मानीने चाले छ। टीकाकारो पण पोताना अर्थघटनमा आ ज दृष्टि अपनावे छ । बे टीकाकारो अथवा तो धर्मनिबन्धकारो सामसामा उतरे त्यारे मनुनु साचु अर्थघटन करवाना बंने दावो करे छ । आ बाबतमा विज्ञानेश्वरनी टीका मिताक्षरा भने जिमुतवाहननो ग्रंथ दायभाग एक उदाहरण रूप छ । ब्रिटिशरोए पण मनुना आ परंपरागत महत्त्वने समजी स्वीकारीने मित्ताक्षरामत तथा दायभागमत देशना पाश्चात्य भने पौरस्त्य भागोने माटे प्रमाण मान्या छे । मा बधा परथी भारतना प्राचीन समाजविचारमा मनुनु महत्त्व केटल मोटुं छे ते स्पष्ट समजाय छे । वळी परम प्रमाण गणायेला मनुए आपेला घणा समाजविचारो एटला रूढ थई गया छे के माजे पण भारतीय समाजमा मनु जीवे छे भारतीय समाज मनुना समाजविचारने ज महाशे अनुसरे छे एम कही शकाय । माटे ज तो पंडित नहेरु कहे छे के : "भारतीयोनो वारसो तेनी पोतानी रीते अनोखो छे.. आपणे जे छीए ते तेना बनाव्या छीए भने मापणे थे भविष्यमां बनीशुं ते पण ते वारसा थकी ज ।"
आ मनु चुस्तपणे प्राचीन भारतीय प्रणालिकाने अनुसरीने वैज्ञानिक रीते व्यवस्थित समाजविचार आपवामां आध छे एम मानोए तो तेमां अतिशयोक्ति नथी। आपस्तम्ब के अन्य केटलाकना धर्मसूत्रग्रंथो तेनाथी प्राचोन होई शके, परन्तु जे परिपूर्णता, सर्वांगस्पर्शिपणा साथे मनु समाजविचार आपे छे, ते रीते जोतां तो ते वैज्ञानिक विचारणामां प्रथम ज छे । मनुओनो परंपरा छे अने तेमां क्रमे क्रमे मानवधर्मशास्त्रनु कद नानुं थतुं आव्यु छे एवी निश्चित प्रमाण विनानी छतां परंपरा