Book Title: Ramayan
Author(s): Harman Jacobi, Vijay Pandya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 75
________________ 66 રામાયણ 3. हा सीते लक्ष्मनेत्येवं चुक्रोशार्तस्वरेण ह म. जी. 278-23 हा सीते लक्ष्मणेत्येवं आक्रुश्य तु महास्वनम् 21. 3-44-24 हा लक्ष्मणेति चुक्रोश त्रायस्वेति महावने 40. 50, 22 अभव्यो भव्यरूपेण भ. मा. 278-32/2 // 3-46-8 अभव्यो भव्यरूपां ताम् बी 52-14 मम लङ्का पुरी नामा रम्या पारे महोदधेः . . 278-34 लङ्का नाम समुद्रस्य मध्ये मम महापुरी 21. 3-47-28 लङ्का नाम समुद्रस्य द्विपश्रेष्ठा पुरि मम जी-43-34 मम पारे समुद्रस्य लङ्का नाम पुरी शुभा 2-3-48-10 महापुरी जी 3-54-14 कथं हि पीत्वा मध्विकं पीत्वा च मधुमाधवीम् लोभं सौवीरके कुर्यान्नारी काचिद् इति स्मरे, 5.278-40 सुरण्य (भी सुराष्ट्र) सौवीरकयोर्यद् अन्तरम् तद अन्तरम् दाशरथेस्तवैव च, 2 / 3-47, 45, 5 53-56 वसते तत्र सुग्रीवश्चतुर्भिः सचिवैः सह, म. 278-45 निवसत्यात्मवान् वीरश्चतुभिः सह वानरैः, 21-72-12 स वसत्यात्मवान् शूरश्चतुभिः सह वानरैः, बी 75-63 8. तृणमन्तरतः कृत्वा तमुवाच निशाचरम् भ.२८१-१७ तृणमन्तरतः कृत्वा प्रत्युवाच शुचिस्मिता, 21-5-21-3 (पीमा नथी) 8. अराक्षसमिमं लोकं कर्तास्मि निशितैः शरैः / .284-162 // 6-41-67 अराक्षसमिमं लोकं करोमि निशितैः शरैः, बी 6-16-68 10. ततः सुतुमुलं युद्ध अभवल्लोमहर्षणम् / .287-23 तद् बभूवाद्भुतं युद्धं तुमुलं रोमहर्षणम् / 2 // 3-25-34=ii 31-44 तत्रासीत् सुमहद् युद्धं तुमुलं लोमहर्षणम् 21-6-43-16=0 18-23

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