________________ जैन धर्म का इतिहास विश्व में अनेक धर्म, दर्शन, संस्कृतियाँ प्रचलित हैं। इन विभिन्न संस्कृतियों को हम एक संस्कृति ‘मानव संस्कृति' में समाविष्ट कर सकते हैं। सैद्धान्तिक दृष्टि से विभाजन करने पर इसके कई नाम प्रचलित हो गए। जैसे-जैन, बौद्ध, वैदिक इत्यादि / संस्कृति ___'सम' उपसर्ग पूर्वक 'कृ' धातु से संस्कृति शब्द बना है, जिसका अर्थ है“वह क्रिया, जिसके द्वारा मन को मांजा जाता है, जीवन को परिष्कृत किया जाता है, मानवता को निखारा जाता है और विचारों को संस्कारित किया जाता है। संस्कृति का तात्पर्य डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार “विवेक बुद्धि के द्वारा जीवन को भली प्रकार से जान लेना है।" ___वस्तुतः संस्कृति ही मानव की प्रतिष्ठापिका है। यही असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से ज्योति की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर, और अनैतिकता से नैतिकता की ओर अग्रसर करती है। मानव-हृदय से अहर्निश सम्पन्न होने वाले देवासुर संग्राम के मध्य आसुरी वृत्तियों को दबाकर दैवी वृत्तियों का उद्बोधन संस्कृति की सहायता से होता है। संस्कृति मानवता को परिष्कृत कर सुविचारों के अंकुर उत्पन्न करती है और यही अंकुर कालान्तर में कल्पपादप बनकर सुस्वादु फलों को प्रदान करता है। अतएव भोजन-पान, आहार-विहार, वस्त्राभूषण, क्रिया-कलाप आदि को सुसंस्कृत कर जीवनयापन करना सांस्कृतिक प्रेरणा का प्रतिफल है। मानवता अपनी आन्तरिक भावनाओं से ही निर्मल होती है और इन भावतत्वों का विकास मनुष्य की मूलभूत चेष्टाओं द्वारा होता है।" जैन संस्कृति की प्राचीनता - जैन संस्कृति इन अनेक संस्कृतियों में एक प्रधान संस्कृति है। प्राचीन काल से चली आ रही दो प्रमुख भारतीय संस्कृतियाँ मानी गई हैं—वैदिक संस्कृति तथा श्रमण संस्कृति / जैन एवं बौद्ध संस्कृति श्रमण संस्कृति के अन्तर्गत आती है तथा अन्य (सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक, मीमांसा-वेदान्त) वैदिक संस्कृति में गिनी जाती है। जैन धर्म का इतिहास / 10