________________ कारण है और प्रकाश कार्य है। इसी प्रकार सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान एक ही समय में होते हुए भी कारण तथा कार्य हैं।२४ ज्ञान की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहा है “पढम नाणं तओ दया”९२५ अर्थात् चारित्र-पालन से पूर्व ज्ञान आवश्यक है। वस्तुतः सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के बीच की कड़ी है, उससे इन दोनों में निखार आता है। जिस प्रकार धागे में पिरोई सुई गिर जाने पर गुम नहीं होती, वैसे ही ज्ञानरूप धागे से युक्त आत्मा संसार में भटकती नहीं।९२६ ज्ञानी आत्मा ही स्व एवं पर के कल्याण में समर्थ होता है / 127 ज्ञान का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। समस्त बाह्याचरणों से ज्ञान को श्रेष्ठ बताते हुए कहा है-समस्त दान, अशन, व्रत, उपवास-तप तथा तीर्थस्नान ये सब किसी अज्ञानी को ज्ञान के दान की सोलहवीं कला के भी समान योग्य नहीं है। 28 ज्ञान ही परब्रह्म हैं।१२९ इस संसार रोग की औषध एक मात्र ज्ञान ही है।१३° अज्ञान मलपूर्वक होने से पुरुष मलिन कहा गया है। उस अज्ञान के क्षय होने से मुक्ति होती है अन्यथा करोड़ों जन्मों में भी मुक्ति नहीं हो सकती है। ज्ञान के अभ्यास से बुद्धि निर्मल हो जाती है। ज्ञान सहित योगी का इस लोक और परलोक में कुछ भी कर्तव्य शेष नहीं रहता, ब्रह्मवेत्ता परमार्थ रूप से जीवन्मुक्त हो जाता है। ज्ञान से बढ़कर पापों का विनाश करने वाला अन्य कोई साधन नहीं है। ज्ञानी पुरुष के समस्त पाप जीर्ण हो जाते हैं। ज्ञानी पुरुष कर्म करता हुआ भी नाना प्रकार के पापों से बद्ध नहीं होता। जैसा ज्ञान होता है, वैसा ही ध्यान होता है।९३३ ज्ञान से ही वैराग्य की उत्पत्ति होती है तथा वैराग्य से परमज्ञान होता है। सत्वनिष्ठ ज्ञान तथा वैराग्ययुक्त योगी योग-सिद्धि प्राप्त करता है / 34 जैनागमों में ज्ञान के पाँच प्रकारों का वर्णन आता है३५– - मतिज्ञान-मन तथा इन्द्रियों की सहायता से होने वाले पदार्थ के ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं। श्रुतज्ञान जो ज्ञाम श्रुतानुसारी हो, जिसमें शब्द तथा अर्थ का सम्बन्ध भासित होता है, जो मतिज्ञानपूर्वक होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। .. अवधिज्ञान इन्द्रियादि की सहायता के बिना आत्मा के द्वारा सीमा को लिए हुए पदार्थ के विषय में अन्तःसाक्ष्य-रूपज्ञान अवधिज्ञान है। इससे रूपी पदार्थों का ज्ञान होता है। ___ मनःपर्ययज्ञान-संज्ञी (समनस्क) जीवों के मनोगत भावों को जानने वाला ज्ञान मनःपर्यय ज्ञान है। .. केवलज्ञान-ज्ञानावरण कर्म का पूर्ण रूप से क्षय हो जाने पर जिस ज्ञान के द्वारा भूत, वर्तमान तथा भावी (त्रिकालवर्ती) समस्त द्रव्य और उनकी समस्त पर्यायें एक साथ जानी जायें, उसे केवलज्ञान कहते हैं। 107 / पुराणों में जैन धर्म