________________ नदियाँ पुराण तथा जैन ग्रन्थों के अनुसार क्षेत्रों को विभाजित करने वाले वर्षधर (पर्वत) हैं, उनमें से नदियाँ निकलती हैं। जैन मान्यता के अनुसार जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रों में चौदह प्रधान नदियाँ हैं, जिनके नाम हैं-गंगा-सिन्धु, रोहिता-रोहितास्या, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, स्वर्णकूला। रूप्यकूला, रक्ता-रक्तोदा। पुराणों में भी कई नदियों के नाम हैं-शतद्रु चन्द्रभागा, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी इत्यादि / वर्षधर पर्वतों पर सरोवर वर्षधर पर्वतों के ऊपर सरोवरों तथा उनमें कमलों (जो वनस्पतिकाय का नहीं होकर पार्थिव है अर्थात् कमल के आकार की पृथ्वी है) का भी जैन एवं पौराणिक मान्यता में समान“ उल्लेख है। भोगभूमि एवं कर्मभूमि भोगभूमि एवं कर्मभूमि का आशय यहाँ योनि (गति) विशेष से न होकर काल तथा क्षेत्र से सम्बन्धित है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ सर्वदा भोगभूमि रहती हैं। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ सर्वदा कर्मभूमि है एवं कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ दोनों प्रकार की परिस्थितियाँ क्रमशः आती रहती हैं। कर्मभूमि तथा भोगभूमि का वर्णन करते हुए जैनागमों में कहा गया है कि कर्मभूमि कर्म प्रधान होती है। वहाँ असि-मसि-कृषि का व्यवहार होता है। वहीं से प्राणी चारों गतियों में जा सकता है तथा मुक्त भी हो सकता है जबकि भोगभूमि में ऐसा नहीं होता।२९ ऐसा ही आशय स्पष्ट करते हुए विष्णु पुराण का कथन है। समुद्र के उत्तर और हिमाद्रि के दक्षिण में भारतवर्ष अवस्थित है। इसका विस्तार नौ हजार विस्तृत है। यह स्वर्ग और मोक्ष जाने वाले पुरुषों की कर्मभूमि है, क्योंकि इसी स्थान से मनुष्य स्वर्ग और मुक्ति प्राप्त करते हैं और यहीं से तिर्यंच और नरक गति में भी जाते हैं, अतः कर्मभूमि है। अग्नि पुराण का भी यही आशय है कर्मभूमिरियं स्वर्गमपवर्गं च गच्छताम् भारतवर्ष ___ जैन परम्परा में यह मान्यता है ऋषभदेव, जो इस युग के प्रथम तीर्थंकर थे, उनके पुत्र भरत के नामानुसार इस क्षेत्र का नाम “भारत” हुआ, क्योंकि वही प्रथम चक्रवर्ती थे, जिन्होंने इस क्षेत्र का सर्वप्रथम राज्यसुख भोगा।" इस मत का समर्थन अनेक पुराणों में दृष्टिगत होता है। पुराणों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के पुत्र थे प्रियव्रत, जिनके पुत्र थे नाभि, नाभि के पुत्र ऋषभ थे, उनके 231 / पुराणों में जैन धर्म