Book Title: Puranome Jain Dharm
Author(s): Charanprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 284
________________ सेवेह परमं धाम, सेवैह परमा गतिः सेवेह परमा काष्ठा, विभूति: परमेष्ठिन" -शिवपुराण वासरखं 476-77 केनोपनिषद् 1.3 कठोरपनिषद् 1.15 . बृहदारण्यक ब्राह्मण 8.8 माण्डुक्योपनिषद 7 तैतिरीयोपनिषद्, बह्मानन्दवल्ली 2 अनुवाक 4 / ब्रह्मविद्योपनिषद् 81-91 55. (अ) मुक्त: शिवसमो भवेत् -शिवपुराण 51.32.22 (ब) शिवसाधण्यमासद्य न भूयो विनिवर्तते . -वही 72.10.14 (स) तदा विद्वान् पुण्य पापे विधूयः निरञ्जन: परमुपैति साम्यम्। . -वही 72.5.37 (द) ततः स्यान्मुक्तसंसारः . .. -वही 71.32.22 56. न च कर्ता न भोक्ता वा न च प्रकृतिपौरुषौ // न माया नैव च प्राणा न चैव परमार्थतः यथा प्रकाशतमसो सम्बन्धो नोपपद्यते // तद्वदैक्यं न सम्बन्ध प्रपंचपरमात्मनः छायातपो यथा लोके परस्पर-विलक्षणौ // -कूर्मपुराण (2) पृ. 49, रतो. 9-12 त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि ननं विभो हरिहरादिधिया प्रपन्नाः / किं काचकामलिभिरीश सितोऽपि शंखो नो गृह्यते विविधवर्णविपर्ययेण // -आचार्य सिद्धसेन कृत 'कल्याणमंदिर' स्त्रोत्र श्लो 18 / 57. 000 ईश्वर की अवधारणा / 264

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