Book Title: Puranome Jain Dharm
Author(s): Charanprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 282
________________ pain are the inevitable lot of the majority of his creatures? Why should he not make happier beings to keep him company? -Champat Rai 'Key of Knowledge' P. 135 ("Jain Shasan" Bharatiya Jnana Pith Kashi, 1944) P. 33, 37 17. न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः न कर्मफलसंयोगे स्वभावस्तु प्रवर्तते। नादत्ते कस्यचित् पापं न चैवं सुकृतं विभुः अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यति जन्तवः / / -गीता 5.14-15 18. डॉ. रमेशकुमार उपाध्याय 'वैष्णव पुराणों में सृष्टि वर्णन' ' पं. बलदेव उपाध्याय द्वारा लिखित भूमिका पृ. 15 19. द्वौ सुपर्णी च सयुजी समानं वृक्षमास्थितौ एकोत्ति पिप्पलं स्वादु परोऽनश्नन् प्रपश्यति // -शिवपुराण-वासपूर्ख 6.30 ("शिवमहापुराण की दार्शनिक तथा धार्मिक समालोचना से) . 20. ब्रह्मा येन कुलाल.कर्मणे / / -गरुड़ पुराण (1) पृ. 385, श्लो. 15 21. आचार्य हेमचन्द्र रचित श्लोक 22. तत्त्वार्थसूत्र का मंगलाचरण 23. आचार्य हरिभद्रसूरि रचित श्लोक 24. सिद्धां जैसो जीव है, जीव सो ही सिद्ध होय / / कर्म मैल को आंतरो, बूझे विरला कोय // 25. कर्मबद्धो भवेज्जीव: कर्ममुक्तो भवेत् शिवः / - मुक्त: शिवसमो भवेत् // -शिव पुराण 7.1.32.22 26. वही 7.2.6. 1-2 27. एगत्तेण साईया अपज्जवसिया विय पुहुत्तेण अणाईया, अपज्जवसिया विय // . -उत्तराध्ययन 36.65 28. श्री अमोलक ऋषिजी म. --'जैनतत्त्व प्रकाश' पृ.८ 29. स्थानांग 229 30. उत्तराध्ययन 19.89-92 32. 106-109 31. लिंग पुराण (2) पृ. 39, श्लो. 75, 73, 74 - 32. (अ) मार्कण्डेय पुराण 38.1-2, 23 (ब) भागवत पुराण ११वां स्कन्द 33. मार्कण्डेय पुराण 38.6-8 34. "He should neither be a source of fear to others nor be apprethnsive of fear from others. He should renounce all wordly desires. He should not have ill-will against any body and should bring the movement of his unruly flesh under subjection. He should practise non-injury and non-violence to all beings by his body, mind and speech. He should purge his mind of ईश्वर की अवधारणा / 262

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