________________ द्वारा पूर्णज्ञान नहीं पाया जा सकता है। मात्र एक दृष्टिकोण से सत्य के आंशिक रूप की ही प्राप्ति होती है, निरपेक्ष सत्य की नहीं। ___ दृश्यते अनेन इति दर्शनम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार दर्शन का तात्पर्य यह है कि आत्मा, परमात्मा, जगत् तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध के ज्ञान का साधन दर्शन कहलाता है। इसलिए दर्शनों में आत्मतत्त्व के निरूपण के साथ-साथ जगत् एवं उनके सम्बन्ध आदि का भी विवेचन हुआ है। __"इन समस्त तत्त्वों के अवगम के साधन विशेष का नाम ही दर्शन है। सम्पूर्ण विश्व ही दर्शन का विषय है। वस्तुतः “युक्तिपूर्वक ज्ञान प्राप्त करने को ही दर्शन कहते हैं।" विभिन्न दर्शनों में तत्त्वों के तथ्यों को जानने के लिए पृथक्-पृथक् दृष्टिकोणों से चिन्तन किया गया है। अतः दर्शनों में परस्पर भेद दृष्टिगोचर होता है और इसी से दर्शनों की संख्या में अनेकत्व के दर्शन होते हैं। ___ भारतीय दर्शनों में जैन दर्शन भी एक प्रमुख दर्शन है। जिसकी मौलिकता एवं ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। जैन धर्म के सिद्धान्तों का वैदिक धर्म से विरोध देखकर अनेक आधुनिक पाश्चात्य विद्वानों ने यह मत व्यक्त किया कि “बौद्ध धर्म की तरह ही जैन धर्म भी वैदिक धर्म के विरोध के लिए खड़ा हुआ एक क्रान्तिकारी नया धर्म है। वह बौद्ध धर्म की एक शाखा मात्र है।" किन्तु जैसे-जैसे इसके मौलिक साहित्य का विशेष अध्ययन बढ़ा, यह भ्रम दूर होता गया। पश्चिमी तथा भारतीय विद्वान यह मानने लगे कि जैन धर्म एक स्वतन्त्र तथा प्राचीन धर्म है। वह वेद के विरोध के लिए उद्भूत नया धर्म नहीं है। उसमें वैदिक कर्मकाण्ड का विरोध अवश्य किया गया है। प्राचीन काल में आर्यों के वैदिक कर्मकाण्ड के विरोध करने वाले धर्म का ही वर्तमानरूप जैन धर्म है, ऐसा संभव है। जिसके स्वर परवर्ती वैदिक साहित्य (उपनिषदादि) में भी सुनाई देते हैं। ___ पहले वेदाध्ययन करने वाले पश्चिमी विद्वानों का यह मन्तव्य था कि भारत में जो कुछ संस्कृति है, उनका मूल वेद में ही होना चाहिए; परन्तु मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई के बाद उनका मत बदल गया और वेद के अलावा भी वेद-पूर्वकाल में भारतीय संस्कृति थी इस नतीजे पर पहुंचे। वस्तुतः जैन धर्म की प्राचीनता सिर्फ महावीर तक ही नहीं है, क्योंकि उन्होंने स्वयं कहा है कि “मैं जो धर्म कह रहा हूँ, वह पहले भी 'जिनों द्वारा कहा गया है और भविष्य में भी कहा जायेगा क्योंकि वह धर्म नित्य है, ध्रुव है। “एस धम्मे धुवे नियए सासए जिनदेसिए।" यही नहीं, अनेक इतिहास विशेषज्ञों एवं दार्शनिकों ने भी इसकी मौलिकता एवं प्राचीनता स्वीकृत की है। उनके अनुसार भी महावीर से पूर्व-२३ तीर्थकर हुए, उपसंहार / 266