________________ करना एवं शुभ तथा सुख की प्राप्ति का लक्ष्य था, वह शुभ से भी हटकर मुक्त होना या मोक्ष प्राप्त करना हो गया। ___ इसी प्रकार से वैदिक संस्कृति से श्रमण संस्कृति भी कुछ अंशों में प्रभावित हुई। यह प्रभाव मुख्यतः भक्तिवाद के रूप में दृष्टिगत होता है, यद्यपि भक्ति का प्राचीन जैन साहित्य में पूर्णतः अभाव था, ऐसी बात नहीं है। सम्यग्दर्शन में भक्ति-श्रद्धा, आस्था भी समाहित हो जाती है; किन्तु फिर भी पश्चात्वर्ती जो स्तोत्र आदि साहित्य दिखाई देते हैं, उनमें स्पष्टतः वैदिक संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जैनधर्म तथा पुराण साहित्य के विचार एवं आचार पक्षों में पर्याप्त समानताएँ हैं। यद्यपि जैन धर्म से विपरीत मतों का भी पुराणों में उल्लेख है, किन्तु फिर उन्हीं मतों के विपरीत जैन धर्म के अनेक मौलिक सिद्धान्तों से मेल खाने वाले विचार भी पुराणों में निर्दिष्ट हैं। पुराणों में स्थान-स्थान पर जैन धर्म का ही नहीं, उसके विषयों एवं सिद्धान्तों का विवेचन स्पष्टतः उपलब्ध होने से जैन धर्म की प्राचीनता निर्विवाद सिद्ध होती है। पुराणों में बैन धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का उपलब्ध होना श्रमण संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति के समन्वित स्वरूप का साक्ष्य है। DOD 273 / पुराणों में जैन धर्म