________________ जैन भूगोल के अनुसार मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। वे क्रमशः द्वीप के बाद समुद्र और समुद्र के बाद द्वीप-इस तरह अवस्थित हैं। जम्बूद्वीप थाली जैसा है और अन्य सब द्वीप-समुद्रों की आकृति वलय (चूड़ी) के समान है। जम्बूद्वीप. लवण समुद्र से वेष्टित है, लवण समुद्र घातकीखण्ड द्वीप से वेष्टित है, घातकीखण्ड कालोदधि समुद्र से, कालोदधि पुष्करवर द्वीप से और पुष्करवर द्वीप पुष्करोदधि से वेष्टित है। यही क्रम आगे के द्वीप-समुद्रों का भी है। आगे से आगे द्वीप-समुद्रों का विस्तार दुगुना होता जाता है। पुष्करार्ध द्वीप तक मनुष्यलोक है। जम्बूद्वीप सबसे पहला द्वीप है और समस्त द्वीप-समुद्रों के बीच में स्थित है। इसका विस्तार एक लाख योजन प्रमाण है, इसके बीच एक लाख योजन ऊँचा मेरु पर्वत कुशक . लगभग इसी प्रकार से पुराणों में भी जम्बूद्वीप को एक लाख योजन वाला तथा लवण समुद्र से चारों ओर घिरा हुआ कहा है तथा मेरू पर्वत की जम्बूद्वीप के मध्य में अवस्थिति, द्वीप के पश्चात् समुद्र एवं समुद्र के पश्चात् द्वीप-यही द्वीप-समुद्रों का क्रम एवं प्रत्येक का विस्तार पूर्ववर्ती क्षेत्र से दुगुना बताया है। पुराणानुसार भी पुष्कर द्वीप तक ही मनुष्यलोक है। किन्तु वहाँ यह सप्तम द्वीप है, जबकि जैन मान्यतानुसार यह तृतीय द्वीप है। इसके अतिरिक्त द्वीप-समुद्र के नामों में भी कुछ अन्तर है जिनका तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है—२७ द्वीप जैन मान्यता द्वीप-समुद्र असंख्यात जम्बूद्वीप पन्द्रहवाँ द्वीप पन्द्रहवाँ द्वीप सोलहवाँ द्वीप पुष्कर तीसरा द्वीप पौराणिक मान्यता द्वीप-समुद्र सात जम्बूद्वीप. ... प्रथम द्वीप कुश . चौथा द्वीप क्रौंच . पाँचवाँ द्वीप सातवाँ दीए समुद्र जैन मान्यता ... लवणोद प्रथम समुद्र . .. 229 / पुराणों में जैन धर्म क्रौंच Ital !