________________ अधोलोक-तिर्यक् लोक के नीचे कुछ अधिक सात रज्जु प्रमाण विस्तार वाला अधोलोक है, इसमें नारकी जीवों का निवास है।" सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाये तो तिर्यञ्च गति के जीव सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। मनुष्य तिर्यक्लोक (मध्यलोक) तक सीमित है तथा देवताओं का अस्तित्व तीनों लोकों में है। पुराणों में भी लोक-वर्णन के अन्तर्गत लोक के यही तीन विभाग किये हैं ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक, अधोलोक। भुवनों (लोकों) की संख्या 14 है। इनमें से सात ऊपर तथा सात पृथ्वी के नीचे हैं। 14 लोकों के नाम इस प्रकार हैं ऊपर के सप्तलोक-भूर्लोक, भवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, वपोलोक, सत्यलोक / महातल, भूमितल, सुतल, निस्तल, तल, रसातल, पाताल-ये 7. नीचे के लोक हैं। (इनके अन्य नाम हैं-अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल)। श्रीमद् भागवत में सम्पूर्ण लोक को एक विराट पुरुष के रूप में इस प्रकार से चित्रित किया गया है—२५ सत्यलोक तथा ब्रह्मलोक मस्तिष्क अन्य ऊर्ध्वलोक (भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः) .. मध्यभाग से ऊपर के भाग. भूमितल जघन स्थल अतल, वितल दोनों उरू सुतल जानु प्रदेश तलातल दोनों जंघाएँ महातल पैर की हड्डी रसातल पैर का पिछला भाग पाताल पादमूल विराट पुरुष की तुलना हम जैन धर्म में वर्णित लोकपुरुष से कर सकते हैं, जो कि चौदह रज्जु प्रमाण हैं। चौदह राज उत्तंग-नभ लोकपरुष संठाण। . तामे जीव अनादि ते भरमत है बिन ज्ञान / / तिर्यक् लोक का वर्णन भौगोलिक वर्णन के अन्तर्गत पुराण तथा जैन धर्म में वर्णित द्वीप-समुद्र-पर्वतादि वर्णन में भी कई समानताएँ हैं, जिन्हें उल्लिखित किया जा रहा है। लोक का मध्य भाग होने से यह मध्यलोक भी कहलाता है। मध्यलोक को मनुष्यक्षेत्र भी कहते हैं, क्योंकि इसके अतिरिक्त ऊर्ध्वलोक और अधोलोक में मनुष्य नहीं होते / यद्यपि.तिर्यक लोक मे सिर्फ मनुष्य ही नहीं रहते हैं, देव तथा तिर्यंचों का भी यहाँ वासस्थान है, फिर भी मनुष्यप्रधान होने से यह मनुष्यलोक कहा जाता है। .. जगत् - विचार / 228