Book Title: Puranome Jain Dharm
Author(s): Charanprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharati Academy

View full book text
Previous | Next

Page 275
________________ है।" योगी पूर्ववत् मानापमान, जीवन-मरण, लाभालाभ आदि में समत्वधारक होता है। ध्यानादि के द्वारा उसके संचित एवं प्रारब्ध कर्म का नाश हो जाता है तथा वह नवीन कर्म का बंध नहीं करता। उसका स्वरूप विभिन्न पुराणों में वर्णित है। भागवत पुराण के अनुसार-"जिसका शरीर किसी दुष्टजन से पीड़ित हो अथवा पूजित हो तो भी मन दुःख या सुख से विकार को प्राप्त न हो, उसको मुक्त समझना चाहिए। जो समदर्शी मुनि किसी की निन्दा-स्तुति नहीं करता है, लौकिक व्यवहार से पृथक् रहता है, कों से उदासीन रहता है तथा जड़ की भाँति विचार करने वाले को मुक्त समझना चाहिए। इससे विपरीत को बद्ध समझना चाहिए। नारदीय पुराण में भी इस वीतरागता, संयम, समत्व, आत्मज्ञान आदि का वर्णन है।"३ अविद्या से रहितता एवं उस आत्मा की सर्वज्ञता भी बताई गई है। शुद्ध विद्या से सम्बद्ध आत्मा सर्वज्ञ हुआ करते हैं। आत्मा की सर्वज्ञता सर्वप्रथम यहीं प्रकाशित होती है। यही कारण है कि यह शुद्ध विद्यातत्त्व के नाम से अभिहित की जाती है अथवा इस श्रेणी पर पहुँच कर पदार्थों का यथार्थ (ठीक) सम्बन्ध अनुभूत होता है।३५ ___मुक्ति के प्रकार वर्णित करते हुए पुराणों में पाँच प्रकार की मुक्ति बताई गई है। यह क्रममुक्ति इस प्रकार है 1. कर्म देह के वशीभूत होने पर शिवलोक में वास मिलता है, उसी वास को ____ सालोक्य मुक्ति कहा है। 2. तन्मात्राओं के बंधन से छूटने पर सामीप्य मुक्ति मिलती है। ईश्वर से निकटता प्राप्त करना सामीप्य मुक्ति है। . 3. बुद्धि के मल के नष्ट हो जाने पर जब वह निर्मल हो जाती है, जब चित्त के धर्म चांचल्यादि भी नष्ट हो जाते हैं, तब सान्निध्य मुक्ति की प्राप्ति होती 4 अन्त में सामरस्य की परमावस्था ही सायुज्यावस्था (सायुज्यमुक्ति) है। 5. पाँचवीं ज्ञानमयी कैवल्य नामक मुक्ति अत्यन्त दुर्लभ है, यह उस शिवात्मक ज्ञान से ही मिलती है। यह सर्वश्रेष्ठ मुक्ति है। इस मुक्ति को प्राप्त करने से भवभ्रमण समाप्त हो जाता है अर्थात् यह प्राप्त होने पर आत्मा पुनः संसार में नहीं लौटता। कैवल्यमुक्ति की प्राप्ति सम्पूर्ण वासना क्षय होने पर ही होती है। कैवल्य में तन्मयी भाव रहता है, उसी को पूर्णत्व कहते हैं। मत्स्य पुराण में लिखा है-ध्याता योगी की योगाग्नि अत्यन्त दीप्त हो जाती है और फिर वह देवों को भी दुर्लभ परम कैवल्यपद को प्राप्त करता है। निराकार परमात्मा - जैन दर्शनानुसार वही (अरिहंत) आत्मा शरीर छोड़ देने के बाद पूर्ण परमात्म 255 / पुराणों में जैन धर्म

Loading...

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308