________________ वाली हो ऐसी बात मुँह से न निकाले; क्योंकि पापी ही ऐसी बातें बोलते हैं। जो स्वभाव से कठोर वचनरूपी काँटों से दूसरे मनुष्य को पीड़ा देता हो, उसे अत्यन्त लक्ष्मीहीन (दरिद्र, अभागा) समझे / "84 क्षमाधर्म का व्यापक स्वरूप बताते हुए जैन धर्म में भी कहा है खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ति मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणई अर्थात-सभी जीवों से मैं क्षमा चाहता हूँ और मैं सभी जीवों को क्षमा प्रदान करता हूँ, समस्त प्राणियों से मेरी मैत्री है, मेरा किसी से वैर नहीं है। प्रस्तुत पद्य में क्षमा का प्राणिमात्र से सम्बन्ध दिखाई दे रहा है। पुराणवत् समत्व की कसौटी इस प्रकार बताई है—वही वस्तुतः मुनि है जो लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निन्दा-प्रशंसा और मान-अपमान में समभाव रखता है। साधक, जो अपनी साधना में उद्विग्न नहीं होता, वही प्रशंसित होता है / क्रोध को क्षमा के द्वारा मिटाना चाहिए, क्रोध से आत्मा नीचे गिरता है, जिस तपस्वी ने कषायों (क्रोधादि) को निगृहीत नहीं किया, वह बाल-तपस्वी है। श्रमण धर्म का अनुकरण करते हुए भी जिसके क्रोधादि कषाय उत्कट हैं, उसका श्रमणत्व वैसा ही निरर्थक है जैसा कि ईख का फूल / ऋण, व्रण, अग्नि और कषाय ये थोड़े से भी उपेक्षणीय नहीं हैं, समय पर ये बहुत विस्तृत हो जाते हैं। वस्तुतः क्षमा का विस्तृत विवेचन करते हुए पुराण तथा जैन धर्म में शक्ति के होते हुए भी क्षमा को धारण करने योग्य माना गया है। तप तप : एक शक्ति तप को पुराण तथा जैन धर्म में उपासना का प्रमुख अंग माना है। तप की महिमा सभी धार्मिक साहित्यों में अंकित है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में तप को ही सभी की आधार शक्ति माना है। वेदों में तप की महत्ता निरूपित की गई है कि सरलात्मा देवताओं ने धूर्त, दुष्ट राक्षसों को तपस् तेज के द्वारा जीता। अथर्ववेद में बताया है ब्रह्मचर्य एवं तप के द्वारा देवताओं ने मृत्यु को जीत लिया। श्रम (संयम-इन्द्रियनिग्रह) एवं तप के द्वारा संसार की रक्षा की जाती है। सृष्टि के मूल में तप की ही शक्ति बताई गई है। परम और श्रेष्ठ ज्ञान तप के द्वारा ही प्रकट होता है। तप के द्वारा ही ब्रह्मज्ञान एवं परमात्म पद प्राप्त किया जाता है।६।। पुराणों के अनुसार तप से सुरराज इन्द्रदेव सबका पालन करते हैं. समस्त लोकों के हितकारक सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र ग्रहादि सभी तप से ही नित्य प्रकाशित होते हैं। इसी प्रकार जैन दर्शन के अनुसार भी तप द्वारा व्यक्ति आत्मबली होता है। आत्मा को पवित्र बनाने वाला तप है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति में तप एक ऐसी शक्ति है जो दुरतिक्रम्य है। सामान्य आचार / 144