________________ आवश्यक होने पर संघ आदि का भी त्याग करना। इनमें से प्रारम्भिक छः बाह्य तप हैं एवं अन्तिम छ: आभ्यन्तर तप हैं। पुराणों में इनका योगांगों के रूप में एवं विकीर्ण रूप से कई स्थलों पर वर्णन है। उदाहरणस्वरूप प्रायश्चित्त का प्रतिपादन करते हुए शिव पुराण में कहा गया है-पश्चात्ताप ही पाप करने वाले पापियों के लिये सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है। सत्पुरुषों ने सबके लिए पश्चात्ताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है। जो पश्चाताप करता है, वही वास्तव में पापों का प्रायश्चित्त करता है, क्योंकि सत्पुरुषों ने पापशुद्धि के लिए जैसे प्रायश्चित्त का उपदेश किया, वह सब पश्चात्ताप के द्वारा सम्पन्न हो जाता है / 92 तप का उद्देश्य तप के विभिन्न उद्देश्य बतलाते हुए पुराणों का मन्तव्य है कि तप जिस-जिस भावना में स्थित होकर किया जाता है, वही फल करने वालों को निश्चय ही मिलता है। उन भावनाओं (उद्देश्यों) को स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह तप सात्विक, राजस और तामस तीन प्रकार का होता है। देवगण तथा संन्यासियों का एवं ब्रह्मचारियों का तप सात्विक अर्थात् सतोगुणी होता है, दैत्य और मनुष्यों का राजस, तथा राक्षस एवं दुष्टकर्म करने वालों का तप तामस होता है। कामना के फल का उद्देश्य करके देह की शोषक तपस्या से जो केवल मनोरथों की सिद्धि के लिए ही तप किया जाता है, वह तामस तप कहा जाता है।९३ “यादृशी भावना यस्य, सिद्धिर्भवति तादृशी” के अनुसार जैन धर्म में भी तप की उत्तमता एवं अधमता बताई गई है। तप का केवल कर्म निर्जरण ही वास्तविक उद्देश्य है। ऐहिक तथा पारलौकिक सुख के लिए एवं यश-कीर्ति के लिए तप का निषेध है। पूजा प्रतिष्ठा, धन, पुत्रादि के लिए या ख्याति के लिए तप को देह शोषक बताया है। इस (विवेक रहित) तप को अज्ञानतप माना है। इस प्रकार जैन धर्म तथा पुराण में निष्काम तप को ही सर्वोच्चता दी गई है। तप कैसे करना उचित है, यह दशवैकालिक सूत्र में स्पष्ट किया है-अपना बल, दृढ़ता, श्रद्धा, आरोग्य तथा क्षेत्र, काल को देखकर-आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिये। तप वैसा ही करना चाहिये जिसमें दुर्ध्यान न हो. योगों की हानि न हो, इन्द्रियाँ क्षीण न हों तथा नित्यप्रति की योग धर्म क्रियाओं में विघ्न न आये।५ तप माहात्म्य सिद्धि प्राप्ति का तप एक सशक्त साधन है। पुराणों में तप द्वारा अनेक लौकिक अभ्युदय स्वर्ग-प्राप्ति तथा इस लोक में यशः प्राप्ति का कंथन है। हरिवंशपुराण सामान्य आचार / 146