________________ रेचन और अन्तर्भाव में स्थिर होना कुम्भक है। चित्त की एकाग्रता के लिए यही प्राणायाम है।१११ ___5. प्रत्याहार–पुराणों के अनुसार-सांसारिक वस्तुओं (रूप, रस, गन्ध, शब्द, स्पर्श) में लगे मन का प्रत्यावर्तन ही प्रत्याहार है। इसी को पतंजलि ने इस प्रकार से बताया है “इन्द्रियों को अपने-अपने विषयों से हटाकर अन्तर्मुखी करना। 112 प्रत्याहार की तुलना जैनागमों में व्यक्त प्रतिसंलीनता (इन्द्रियों को अपने विषयों से हटाकर अन्तर्मुखी करना) तप से ही हो सकती है, जो चार प्रकार का है / 13 / . (1) इन्द्रिय-सलीनता-इन्द्रियों के विषयों से बचना। . . . . (2) कषाय-संलीनता क्रोध, मान, माया, लोभ से बचना। (3) योग-संलीनता-मन-वचन-शरीर की प्रवृत्ति से बचना। . (4) विविक्त-शय्यासन-एकान्त स्थान में सोना, बैठना / 6. धारणा चित्त का स्थानबंध-स्थिरता धारणा कहलाती है।१४ योगदर्शनकार के अनुसार चित्त को किसी ध्येय में बांधना-स्थिर करना धारणा है / 15 जैन परंपरा में इस धारणा के अर्थ में “एकाग्रमन सन्निविशना” (किसी आलम्बन में मन को स्थापित करना) है, जिसका फल “चित्तनिरोध” बताया गया है। 16 .. 7. ध्यान-योगदर्शन के अनुसार-ध्यान का अर्थ चित्त का एक विषय में स्थिर होना है। 17 अग्नि पुराण में ध्यान, ध्याता, ध्येय और ध्यान-प्रयोजन इन चारों को जानकर योग साधना करने का निर्देश दिया गया है। 18 इस बात को तत्त्वानुशासनकार ने भी समझाया है कि ध्यान साधना में गति करने के इच्छुक साधक को पहले ध्यान के इन अंगों को सम्पूर्ण और विधिवत् जानकारी प्राप्तव्य है-ध्याता, ध्यान, फल (संवर-निर्जरा आदि के रूप में), ध्येय, यस्य (ध्यान का स्वामी), यत्र (ध्यान करने का क्षेत्र-स्थान), यदा (ध्यान का समय), यथा (ध्यान की योग्य विधि)। इस प्रकार के ज्ञान के अभाव में ध्यान दुर्ध्यान भी हो सकता है। ध्यान का महत्त्व अग्निपुराणकार ने ध्यान की महत्ता इस प्रकार से प्रतिपादित की है—ध्यान यज्ञ सर्वदोषों से रहित शुद्ध यज्ञ है। अतः यज्ञ आदि कर्मों तथा अशुद्ध और अनित्य बाह्य साधनों को त्याग कर मोक्षप्रदायी ध्यान-यज्ञ करना ही उपादेय है / 12deg ध्यान को अन्य सभी धार्मिक कृत्यों से श्रेष्ठ संपादित करते हुए शिवपुराणकार का मत है-ध्यान के द्वारा प्रसन्नता और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। इस संसार में ध्यान से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई दूसरी वस्तु नहीं है। ध्यान करने वाले साधक परमात्मा शिव को विशेष आचार / 200