________________ प्रकार विलीन (विनष्ट) हो जाते हैं, जैसे प्रचंड वायु के चलने से मेघों की सघन घटाएँ विलीन हो जाती हैं।१६९ निष्कर्षत पुराण तथा जैन धर्म में योग का लक्ष्य मुख्यतः समाधि अवस्था प्राप्त करना है, क्योंकि समत्व को मुक्ति का परम पद प्राप्त करने में परम आवश्यक माना गया है। इस प्रकार आचार वर्णन के अन्तर्गत वर्णित आचारों के सामान्य तथा विशेष दोनों प्रकारों में पुराण तथा जैन धर्म में पर्याप्त समानताएँ दिखाई देती हैं। जैन साधना के मूल मन्तव्य अहिंसा की व्याख्या, परिभाषाएँ पुराणों में भी विस्तृत रूप से व्यक्त हैं। उनमें समस्त आचारों में मुख्य अहिंसा को बताते हुए अन्य सभी आचारों का समावेश अहिंसा में बताया है। इतना ही नहीं, पुराणों की यह विशिष्टता है कि जैसे जैन दर्शन में यज्ञादि वैदिक कर्मकाण्डों का विरोध करते हुए सूक्ष्म अहिंसा-पालन पर बल दिया गया है; वैसे ही पुराणों की निवृत्तिवादी विचारधारा में स्पष्टतया हिंसात्मक समस्त कर्मकाण्ड वर्जित बताते हुए अहिंसा के सर्वांगीण रूप को महत्त्व दिया है। जिस प्रकार से जैन दर्शन में त्यागवृत्ति एवं निवृत्तिवादी विचारधारा प्रवाहित हुई है; वैसे ही पुराणों में अनासक्ति का सन्देश देते हुए निवृत्ति को श्रेयस्कर तथा मोक्ष का हेतु बताया है। त्याग, तप, सदाचरण, ध्यानादि का विवेचन जैन दर्शन के समान पुराणों में भी प्रचुर है। जैन दर्शन के समान ही पुराणों में भी मुनि-जीवनचर्या से सम्बन्धित कई प्रकार के आचार बताये गये हैं। .. सारांशतः आचार को धर्म के व्यावहारिक रूप में जैन धर्म तथा पुराणों ने ही नहीं, भारत की समस्त संस्कृतियों ने पर्याप्त महत्त्व दिया है। .. 000 209 / पुराणों में जैन धर्म