________________ ब्रह्मा के समान अनेक महर्षि हुए हैं, जो मानसी सृष्टि की रचना में समर्थ थे, यथा महर्षि कश्यप और मनु से भी मानसी सृष्टि में पशु, स्थावर जंगम आदि की उत्पत्ति हुई। इस मानसी सृष्टि का वर्णन विष्णुपुराण' श्रीमद् भागवत" तथा वेदों में भी हुआ है। 3. वंश श्रीमद् भागवतानुसार सृष्टि के आदि में ब्रह्मा से उत्पन्न हुए राजाओं का भूत, भविष्यत्-वर्तमान समय के कुल परम्परा का जहाँ वर्णन किया जाये, वह वंश है। पुराणाग्रन्थों में सूर्यवंश, चंद्रवंश, भृगुवंश, वशिष्ठवंश, गौतमवंश, कश्यपादि वंशों का सृष्टि के आरम्भ से ही कुलक्रमों की सुव्यवस्थित परम्परा का वर्णन मिलता है। 4. मन्वन्तर __ जैसा कि श्रीमद् भागवतकार ने कहा है-मनु तथा मनु के पुत्रों का, देवताओं का, ऋषियों का, अंशावतारों और प्रसिद्ध घटनाओं का जहाँ उल्लेख किया जाये, उसे मन्वन्तर कहते हैं। एतदनुसार ही पुराणों में मन्वन्तर उल्लिखित हैं। ___एक कल्प में चौदह मनु होते हैं। इन चौदह मनुओं में से किस मनु ने किस स्मृति का प्रणयन किया, उसकी स्त्री-पुत्रादि, तत्कालीन ऋषि, महर्षि, राजा, महापुरुष इत्यादि बातों का ज्ञान मन्वन्तर के ज्ञान द्वारा संभाव्य है। पुराणों के मतानुसार सृष्टि काल से लेकर प्रलय पर्यन्त लगभग 4 अरब वर्ष से अधिक समय में कब कौनसी घटनायें घटी, किन-किन महापुरुषों का आविर्भाव हुआ, इत्यादि ज्ञानार्थ वेदव्यासजी द्वारा मन्वन्तर पद्धति का आविष्कार किया गया। - इसके अन्तर्गत भौगोलिक विवेचन भी आ जाता है। मृत्युलोक के सम्बन्ध में कथन है कि यह सात लोकों में से अन्यतम भूलोक का चतुर्थाश है। यहाँ प्राणी मातृगर्भ से उत्पन्न होते हैं और मृत्यु को प्राप्त करते हैं। सभी प्राणी स्वकर्मवश होकर मृत्यु के बाद सुकृत के अनुसार स्वर्ग-सुखोपभोग करते हैं, कुछ पाप कर्मों द्वारा नरकलोक की यातनाओं को भोगते हैं। मृत्युलोक के ऊपर तीन लोक हैं, जिन्हें देवलोक कहते हैं। इनमें देवपिण्डधारी देवता रहते हैं। मनुष्य द्वारा नहीं दिखने वाले ये देवलोक मानवलोक से परे और सूक्ष्म हैं। इन लोकों में देव तथा असुर दोनों देवपिण्ड को धारण करते हैं। अन्तर यही है कि देव आध्यात्मिक वृत्ति प्रधान होते हैं तथा असुर इन्द्रियोन्मुख प्रवृत्ति प्रधान। इसलिये समय-समय पर उनमें परस्पर संग्राम होता रहता है। इस भूलोक के 4 भाग हैं 1. पितृलोक धर्मराज पदविभूषित यम की राजधानी है। 2. नरकलोक 3. प्रेतलोक 4. मृत्युलोक (इसे जंक्शन के सुन्दर प्लेटफॉर्म की तरह माना है) पुराण परिचय / 46