________________ से दूसरे स्थान में गमन आदि परिस्पन्द को क्रिया कहते हैं। छोटे-बड़े के व्यवहार को परत्वापरत्व कहते हैं, जैसे पच्चीस वर्ष के मनुष्य को बड़ा और बीस वर्ष के मनुष्य को उसकी अपेक्षा छोटा कहते हैं। ये सब कालद्रव्य की सहायता से होते हैं। इसलिये इन्हें देखकर अमूर्तिक निश्चयकाल द्रव्य का अनुमान किया जाता है। यद्यपि परिणमन की शक्ति स्वयं पदार्थ में रहती है फिर भी बाह्य निमित्त उसमें सहायक होता है। यथा पुल के वर्णादि स्वयं ही परिवर्तित होते हैं तथापि काल के द्वारा परिवर्तन कराया जाता है। “काल की प्रमुख विशेषता अन्य द्रव्यों की पर्यायों को परिवर्तित करना है। वैसे द्रव्य स्वयं ही अपनी अवस्थाओं में परिवर्तन करते हैं, फिर भी उनके इस परिवर्तन का कुछ बाहरी कारण होता है, यह बाहरी कारण काल है।"२९ इस प्रकार द्रव्य की पर्यायों के परिवर्तन में अर्थात् किसी पर्याय से निवृत्ति और अन्य किसी पर्याय को ग्रहण कराने में काल सहकारी होता है। काल एक प्रदेशी है, बहुप्रदेशी न होने से उसे कायवान् द्रव्य नहीं माना है, काल अनादि अनन्त है। काल की गणना अढाई द्वीप (मनुष्य क्षेत्र) में ही सूर्य-चन्द्र की गति के कारण होती है / 22 पूर्वोक्त अवधारणा के समान ही पुराणों में काल को परिवर्तन का कारण माना गया है। काल का महत्व वहाँ एक सार्वभौम नियम के रूप में प्रस्तुत हुआ है, जो व्यवस्थापक है। शिवपुराणानुसार–“काल से ही वस्तु की उत्पत्ति और लय है, क्योंकि काल कभी निरपेक्ष नहीं रहता। जब यह जगत् लीन हो जाता है, तब पुनः उत्पन्न होता है वह उत्पत्ति और प्रलयचक्र के समान चलता ही रहता है। ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र तथा अन्य देवता जिसके नियम का उल्लंघन करने में समर्थ नहीं हैं, जो काल भूत, भविष्य, वर्तमान रूप से विभाग करके प्रजा' को जराग्रस्त करके भयंकर रूप से वर्तमान रहता है। अत्यन्त बुद्धिमानी दिखाकर भी कोई व्यक्ति काल को अन्यथा करने में समर्थ नहीं है, क्योंकि काल के क्रम को कभी अस्थान नहीं किया जा सकता। जो पराक्रम से इस पृथ्वी को वश में करके एकछत्र शासन करता है वह भी काल की मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकता। जो इन्द्रियों को वश में करके सम्पूर्ण जगत को जीत लेते हैं, वे भी काल पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते, किन्तु काल उन पर विजय प्राप्त कर लेता है। आयुर्वेद और रसायन के ज्ञाता वैद्य भी काल को मिटाने में समर्थ नहीं हैं, क्योंकि काल दुरतिक्रम है। काल के बिना प्राणी का मरण, जन्मग्रहण, पुष्टि आदि सम्भव नहीं है। काल के बिना दुख-सुख की प्राप्ति भी नहीं होती। अकाल की कोई वस्तु नहीं होती। काल से ही शीतल समीर बहती है। काल से मेघ वर्षा करते हैं। काल से उष्णता शान्त होती है तथा काल से ही सब कार्य सफल होते हैं। काल ही सबकी उत्पत्ति का कारण है। काल से ही नष्ट होते हैं। काल से ही सब लोक जीवित हैं। काल तो स्वयं अनादिअनन्त है।२३ द्रव्य - विचार / 58