________________ माहेश्वर सूत्र को महेश्वर से आगत कहा जाता है. वैसे ही जैन परंपरा ऋषभदेव द्वारा ब्राह्मी पुत्री को सिखाई ब्राह्मी लिपि है, जिसकी अक्षर विद्या तथा माहेश्वर सूत्र बद्ध वर्णमाला में स्वरूपतः ऐक्य है। शिव का वाहन वृषभ (बैल) है, उसी प्रकार जैन मान्यतानुसार ऋषभदेव का चिह्न वृषभ है। जटा जूट के सम्बन्ध में भी यह तुलनीय है कि भगवान ऋषभदेव के दीक्षा लेने के पश्चात् तथा आहार लेने से पूर्व एक वर्ष के साधक जीवन में केश बहुत बढ़ गये थे। अन्य तीर्थंकर वस्तुतः ऋषभदेव का विस्तृत तथा अनेक रूपों में भारतीय साहित्य में विवरण मिलता है। केवल ऋषभदेव का ही नहीं, अन्य तीर्थंकरों का भी उल्लेख वैदिक साहित्य में है। यजुर्वेद में दूसरे तीर्थकर अजितनाथ का वर्णन है।५° सोरेन्सन ने महाभारत के विशेष नामों का कोष बनाया है जिसमें सुपार्श्व, चन्द्र और सुमति ये तीन नाम ऐसे हैं, जो तीर्थंकरों के नामों से साम्य रखते हैं। विशेष ध्यातव्य है कि ये तीनों ही असुर थे-पौराणिक मान्यतानुसार जैनधर्म असुरों का धर्म है। ईश्वर के अवतारों में जिस प्रकार ऋषभ को अवतार माना है, उसी प्रकार सुपार्श्व तथा चन्द्र को भी अंशावतार माना है। विष्णु और शिव के सहस्रनाम जो महाभारत में दिये गये हैं, उनमें श्रेयांस, अनन्त, धर्म, शान्ति, संभव नाम भी हैं, जो जैन तीर्थंकरों के भी मिलते हैं। इससे पता चलता है कि पौराणिक (ऐतिहासिक) महापुरुषों का अभेद शिव और विष्णु से करना यह भी उनका एक प्रयोजन था। बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रत के मुनि को सुव्रत का विशेषण माना जाये तो सुव्रत नाम ठहरता है। महाभारत में विष्णु और शिव का भी एक नाम सुव्रत मिलता है। नाम साम्य के अलावा इन महापुरुषों का सम्बन्ध असुरों से जोड़ा जाता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि ये वेद विरोधी थे। इससे उनके श्रमण परंपरा से सम्बद्ध होने की संभावना दृढ़ होती है। ऋग्वेद में विभिन्न स्थलों पर अरिष्ट नेमि (जिनके कृष्ण चचेरे भाई थे) का उल्लेख हुआ है।५२ उनको वहाँ तार्क्ष्य अरिष्टनेमि भी लिखा है। यजुर्वेद में कहा गया है कि अध्यात्म यज्ञ को प्रगट करने वाले संसार के भव्य जीवों को यथार्थ उपदेश देने वाले तथा जिनके उपदेश से आत्मा पवित्र बनती है, उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिये आहुति समर्पित करता हूँ। छांदोग्योपनिषद् में उनका वर्णन 'घोर आंगिरस' के नाम से आया है, उन्होंने श्रीकृष्ण को आत्म यज्ञ की शिक्षा प्रदान की, जिसकी दक्षिणा दान, तपश्चर्या, ऋजुभाव, अहिंसा, सत्य वचन रूप थी।५ महाभारत में भी उनकी स्तुति स्वरित हुई है। स्कन्द पुराण में कहा गया है-अपने जन्म के पिछले जैन धर्म का इतिहास / 18