________________ भाग में वामन ने तप किया, जिसके प्रभाव से शिव ने वामन को दर्शन दिये. वे (शिव) श्याम वर्ण, अचेल तथा पद्मासन से स्थित थे। वामन ने उनका नाम नेमिनाथ रखा। नेमिनाथ इस घोर कलिकाल में सब पापों का नाश करने वाले हैं। उनके दर्शन और स्पर्श से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है।५० इस प्रकार से पुराणादि साहित्य में न केवल तीर्थकों का ही वर्णन है, अपितु नामशः आर्हतधर्म (जैनधर्म) तथा उसके सिद्धान्त भी निरूपित हैं। पुराणों में आईधर्म या जैनधर्म ___ “पुराण साधारणतः जैनधर्म से परिचित हैं। ज्ञात होता है जैनधर्म के ख्याति काल में यह पुराण जैन मत के प्रभाव से वंचित न रह सके, इसी कारण विष्णु, पद्म, दैवी भागवत और मत्स्य समान रूप से जैन धर्म के प्रति परिचय प्रकट करते हैं। 58 अधिकतर पुराणों में जैन धर्म का उल्लेख आहेतधर्म के नाम से है। पुराणों में जो देवासुर संग्राम का वर्णन है, उसके सन्दर्भ में कहा जाता है कि वह संघर्ष भी एक प्रकार से दो संस्कृतियों या जातियों के मध्य था। उसमें से असुर राजा प्राय: अहिंसक जैन संस्कृति से सम्बद्ध थे, परन्तु विद्वेष के कारण 'असुर' शब्द का अर्थ हिंसक का पर्यायवाची बना दिया गया है। पद्म पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों में इनके विषय में पर्याप्त विवेचन है। अर्हन् शब्द जो कि श्रमण संस्कृति में वीतराग भगवन्तों के लिये प्रयुक्त किया जाता है, उसका भी अनेकदा उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। अर्हत के उपासक होने से जैन लोग आहेत कहलाते थे। इस आहेत परंपरा का वर्णन श्रीमद्भागवतादि पुराणों में स्पष्ट उपलब्ध होता है। श्रमण नेता के लिये ऋग्वेद में भी 'अर्हत' शब्द प्रयुक्त है। पद्म पुराण के अनुसार आर्हत धर्म माया-मोह द्वारा कथित है, इस धर्म के आश्रित आहेत कहलाये, माया-मोह द्वारा सब दैत्य वेदत्रयी के धर्म से छुड़ाकर असुर करा दिये गये। वे संयम में स्थिरवादी होते हुए अर्हत को. मेरा नमस्कार हो, ऐसा कहते थे। इस पुराण में आर्हतों की विचारधारा इस प्रकार की बताई गई है-“यदि आप लोगों को स्वर्गीय निवास अथवा निर्वाण पद प्राप्त कर लेने की अभिलाषा है यज्ञादि के पशुपात करना बन्द कर दो। यह सम्पूर्ण जगत आधार से रहित है और इसमें केवल प्रान्ति का ही ज्ञान भरा हुआ है, यह राग आदि से अत्यधिक दोषपूर्ण है, इसी से यह जीवात्मा इस संसार के संकट में प्रान्त किया जाता है। वेद, यज्ञादि कर्म समूह, द्विजन्मी ब्राह्मणों की आलोचना करते हुए कहा गया है कि यह वचन युक्तिसंगत कभी भी नहीं हो सकता कि हिंसा से धर्म होता है। (कोविदगण विज्ञान अग्नि में दग्ध हवि फलों से हिंसा नहीं करते)। यज्ञ में वध किये 19 / पुराणों में जैन धर्म