________________
प्र० सा० तत्कल्याणक्रिया चांत्ये मध्येऽज्वस्याभवं गुणान्।पत्रेष्वष्टसु चाभ्यर्य ध्मावार्चायां शिवक्रियाभाल्टी० सपालाद्युत्सवा कार्या ततश्चाभिषवक्रिया । मरुद्विसर्गबल्याशीर्दीक्षामोक्षक्षमापणाः ॥१०३॥
अ०१ 1३ प्रतिष्ठोक्तविधि सम्यग्विधायारोपियेद् ध्वजम्।प्रासादे तेन भात्येष सर्वेषां स्याच्छुभाय च१०४
स्थाप्यं तु विंबे सिद्धानां सम्यक्त्वादिगुणाष्टकम्।रत्नत्रयं च विधिवच्छेषाणां स्वस्वमंत्रतः१०५१ सर्वज्ञवागभिव्यक्तानेकांतात्मार्थसार्थवत् । न्यसेद्वाग्देवतार्चादावंगपूर्वप्रकीर्णकम् ॥ १०६॥ क्रिया करनी चाहिये ॥१०२॥ फिर फूलमालाका उत्सव करके प्रभुका अभिषेक करे । फिर देवताओंका विसर्जन रथयात्रा संघपतिको आशीर्वाद यज्ञ दक्षिाका छोडना और आये हुए सब सज्जनोंसे क्षमावनी करना ॥ १०३ ॥ इस तरह प्रतिष्ठाशास्त्र में कही|| विधिको अच्छी तरह करके जिन मंदिरके ऊपर ध्वजा चढाये । उस ध्वजासे जिन मंदिरकी एक तो शोभा होती है दूसरे राजा प्रजा सबको कल्याण होता है ॥१०४॥ इसप्रकार है अर्हत प्रतिमाकी विधि संक्षेपसे कही गई । इसका विस्तार आगे कहेंगे। अब सिद्ध आदिकी । मूर्तिकी प्रतिष्ठाकाविधान कहते हैं-सिद्धोंकी प्रतिमामें सम्यक्त्व आदि आठ गुणोंका स्थापन करे और वाकी आचार्य आदि परमेष्टियोंकी प्रतिमा विधिपूर्वक अपने २ मंत्रसे सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक् चारित्र इन तीन रत्नोंका स्थापन करे ॥ १०५ ॥ सर्वज्ञके मुख४ कमलसे निकली हुई, गणधरोंकर प्रगट किया गया है अनेकांत स्वरूप पदार्थोंका समूह है।
१ शक्तिके माफिक द्रव्य देकर भगवानके नामसे फूलमाला लेकर चढाना ।