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Sornन्छन्झन्जकल
येष्विष्टेषु च तापसादिषु शमं यांत्याशयित्वार्चिते
ध्वातन्वंतु गुरुप्रसादवरदास्तेर्कादयो वः शिवम् ॥ २४ ॥ कुमारदीक्षितेष्वेकतममर्चयतां रुजः । कुजः कुष्याद् ग्रहाः शेषाः सवर्णेषु जिनेषु वः ॥२५॥ आदित्यादीनां सपर्याविध्यनुवादमुखेन प्रभावख्यापनाय प्रतिदिशं पुष्पोदकाक्षतं क्षिपेत् ।
ग्रहाः संशब्दाये युष्मानायात सपरिच्छदाः।।
अत्रोपविशतैतान् वो यजे प्रत्येकमादरात् ॥ २६ ॥ आवाहनादिपुरस्सरं प्रत्येकजोपक्रमाय पुष्पांजलिं क्षिपेत् । संन्यासी आदिकर किये गये उपद्रव शांत होते हैं । ऐसे गुरूके प्रसादसे वर देनेवाले है। सूर्यादि ग्रह तुम भव्योंका कल्याण करें ॥ २४ ॥ अथवा बाल ब्रह्मचारी वासुपूज्य मल्लि नेमि पार्श्व महावीर-इन पांचोंमें किसी एकको पूजनेसे मंगल ग्रह रोग शांत करता है। और ग्रहोंके समान वर्णवाले तीर्थंकरोंमेंसे किसी एकको पूजनेसे वाकी अन्य ग्रह भी। रोगोंका नाश करते हैं ॥ २५ ॥ सूर्यादि ग्रहोंकी पूजाविधिके द्वारा प्रभाव वतलानके लिये शासव दिशाओं में पुष्प जल अक्षतोंको क्षेपण करे। अब आह्वानादि पांच उपचारोंसे उनकी । पूजा दिखलाते हैं-हे सूर्यादि ग्रहो! हम तुमको बुलाते हैं, तुम सपरिवार आओ, यहां तिष्ठो, तुम सबको हम आदरसे पूजते हैं । यहां पर आह्वानन स्थापन सनिधीकरण पूजन