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प्र०सा०
भा०टी०
अ०२
सत्कृत्योपहृतामिमामिह महे पूर्णाहुतिं मामुत
प्रीतिं व्यक्त च यष्ट्रयाजकनृपादीष्टप्रदानाद् द्रुतम् ॥ ३७॥
पूर्णाहुतिः । ओं ह्रीं ह्रः फटू आदित्यमहाग्रह अमुकस्य शिवं कुरु २ स्वाहा । एवं सोमाशादिष्वपि योज्यम् ।
हुत्वा स्वमंत्रचितमंबुनि सप्तसप्तमुष्टिप्रमाणतिलशालियवं प्रसत्तिम् । नीता घृतप्लुतसमिद्भिरथामिकुंडे एकादशस्थवदवंतु सदा ग्रहा कः ॥ ३८॥
आशीर्वादः । इति ग्रहपूजाविधानम् । अथात्र मंडले स्नपनपीठे निवेश्य जिनचतुर्विशतिं प्रागुक्तविधिना स्नपयेत् । लध्वेषोष्टदळे शांतिकर्मैकाशीतिके वृहत् । मंडले ख्याप्यतां कल्पो यथा ध्यानं तु तत्फलम्॥३९॥ इत्यादिसे पूर्ण आहूति दे। हर एक ओहीमें ग्रहोंके नाम तथा यजमानका नाम अवश्य लगाना चाहिये ॥३७॥ फिर 'हुत्वा' इत्यादि आशीर्वाद श्लोक पढे फिर सात सात मुठी प्रमाण तिल शालिचांवल जौ इन तीन धान्योंको जलमें क्षेपणकर घृतसे लिपटी हुई लकडीसे अग्निमें | आहूतियां दे ॥ ३८॥ इस प्रकार नव ग्रहकी पूजा जानना ॥ उसके वाद उस मांडलेमें ? अभिषेकके सिंहासनपर चौवीस तीर्थकरोंका स्थापन करके पहले कही हुई विधिसे अभि-॥३१ क करे ॥ लघुशांतिकर्म आठपत्रके मंडलपर और वृहत् शांतिकर्म इक्यासी कोठोंके ।