Book Title: Pratishtha Saroddhar
Author(s): Ashadhar Pandit, Manharlal Pandit
Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalay

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Page 257
________________ भा०टी० अ०५ ततो मंडपबायकोदेशेर्चाया सुसंस्कृते । कुर्यादाकरशुद्धिं तां शेषं मध्यवदाचरेत् ॥ ४९ ॥ प्र०सा० इति मध्यमसंक्षिप्तप्रतिष्ठानुष्ठानविधानम् ।। ॥१४॥ प्रासादस्य ध्वजं चिन्हं तेनासौ शोभते यतः। शुभप्रदश्च सर्वेषां तस्मात्तमधिरोपयेत् ॥ ५०॥ हस्तत्रिभागविस्तीर्णरर्धहस्तायतैः । वस्त्रोत्तमसुसंश्लिष्टैर्ध्वजं निर्मापयेच्छुभम् ॥ ५१ ॥ है सितं रक्तं सितं पीतं सितं कृष्णं पुनः पुनः । यावत्मासाददीर्घत्वं तावत्संघट्टयेत् क्रमात् ५२ चंद्रार्धचंद्रमुक्तासक्किंकिणीतारकादिभिः । नाना सद्रपयुग्मैश्च चित्र पत्रर्विचित्रयेत् ॥५३।। अधश्छत्रत्रयं मूर्धस्तस्याधः पद्मवाहनम् । तस्याधः कलशं पूर्ण पार्श्वयोः स्वस्तिकं लिखेत् ५४ दीपदंडौ लिखेत्स्वस्ति शिखायाः पार्श्वयोस्तथा । पार्श्वयोरातपत्रस्य श्वेतचामरयुग्मकम् ॥५५।। और वाकी क्रियाको अर्थात् क्षमावनी आदिको पूर्वकथित रीतिसे करे ॥ ४८ : ४९ ॥ यह मध्यम और संक्षेपीतसे प्रतिष्ठाकी विधि कही गई है ॥ उसके वाद जिन मंदिरके शिखरपर धुजाको चढावे उससे मंदिरकी शोभा होती है और सबको कल्याण ह होता है ॥ ५० ॥ बारह अंगुल लंबी और आठ अंगुल चौड़ी मजबूत उत्सम कप. सड़की धुजा वनवावे ॥ ५१ ॥ धुजाका कपड़ा सफेद लाल सफेद पीला सफेद काला फिर इसी क्रमसे रंगवाला तयार करावे ॥ ॥२॥ धुजामें चंद्रमा माला घंटरियां तारे इत्यादि अनेक चिन्ह वनाके चित्रित करे ॥५३॥ कलश सातिया दीपदंड छत्र चमर धर्मचक लिखकर धुजाके ऊपर जिनविबका आकार बनावे। उसमें एक छत्र लगावे। उस धुजामें ॥९२४॥

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