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भन्सा
वि० सू०
१४॥
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विषय.
पृ. सं. इंवकर स्तुतिपूर्वक किया गया तांडव नृत्य ९९ मूलवेदीमें प्रतिमाका निवेशन तथा जिनमातृस्नपन ९९ प्रभुकेलिये भोग उपभोगकी सामग्रीका इंद्रकर किया।
गया प्रबंध ... ... ... १०० तपकल्याणका विधान, उसमें कारण वश भगवानको वैराग्य होना तथा लोकांतिक देवोंको आकर स्तुतिकरना ...
... १.१ पालकीमें बैठाकर दीक्षाकेलिये वनको लेजाना १०२ वापर दीक्षावृक्षोंका स्थापन तथा स्वयं दीक्षा | ग्रहण करना ...
... १०२ केश लोंच आदि क्रिया और उसी समय चौथे ज्ञानको । प्रगट होनेका विधान
१०३ तिलकदानविधि
१०३ संस्कारमालारोपण विधि
१०६ मंत्रन्यासविधि अधिवासनाविधि
१०८ स्वस्तिवाचन
१११ केवलज्ञान कल्याणका स्थापन
११२ श्रीमुखोद्घाटन ...
११२
विषय.
पृ. सं. नेत्रोन्मीलन क्रिया गुणों का आरोपण... ... ... केवल ज्ञानके समय होनेवाले दस अतिशयोंका स्थापन११३ समवसरणकी स्थापनाका विधान
११४ देवकृत चौदह अतिशयोंका स्थापन ... ११४ आठ महाप्रातिहााँका स्थापन अहेतदेवका साक्षात्करण। मोक्षकल्याणककी स्थापना ...
पांचवा अध्याय ॥५॥ अभिषेकविधि ... ... ... सब देवोंके विसर्जनका विधान ... परब्रह्म श्रीअर्हतदेवका ध्यान शांतिधारा.... पुणयाहवाचन अर्थात् राजा आदिक सबके कल्याण होनकी प्रार्थना
... ...
११८ जिनालयकी प्रदक्षिणा ..
१२१ यजमानको प्रतिष्ठाचार्यका सत्कार करना १२१ प्रतिष्ठाचार्यको आशीर्वाद देना
१२१| प्रतिष्ठाचार्यको गुरुके पास यज्ञदीक्षाका छोड़ना १२३ क्षमावनीकी विधि यजमानको करना ...
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॥१४३॥